Booker Award 2022 | गीतांजलि श्री बनीं अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली हिंदी लेखिका | Tomb of Sand | रेत समाधि

Geetanjali Shree: Tomb of Sand

दिल्ली की हिंदी लेखिका गीतांजलि श्री अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय हिंदी लेखिका बन गई हैं। उनके उपन्यास 'Tomb of Sand (रेत समाधि)' के लिए उन्हें प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। Tomb of Sand हिंदी का पहला उपन्यास है जिसे अंतर्राष्ट्रीय बुकर प्राइज मिला है।


एक कहानी अपने आपको कहेगी,
मुकम्मल कहानी होगी और अधूरी भी, 
जैसी कहानियों का चलन है,
दिलचस्प कहानी है।।


बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली हिंदी लेखिका गीतांजलि श्री के उपन्यास 'रेत की समाधि' के यह पहले दो वाक्य हैं।


Tomb of Sand: एक अद्वितीय उपन्यास

बुकर पुरस्कार देने वाली संस्था ने बताया, "Tomb of Sand इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार जीतने वाली किसी भी भारतीय भाषा में मूल रूप से लिखी गई पहली पुस्तक और हिंदी से अनुवादित पहला उपन्यास है।


गीतांजलि का यह उपन्यास मूल रूप से हिंदी शीर्षक 'रेत समाधि' के नाम से प्रकाशित हुआ था जिसे डेजी रॉकवेल ने अग्रेजी में 'Tomb of Sand' के रूप में अनुवादित किया था, जिसका प्रकाशन 'टिल्टेड एक्सिस' ने किया था।


निर्णायक पैनल के अध्यक्ष फ्रैंक विने ने कहा, आखिरकार, हम डेजी रॉकवेल के अनुवाद में गीतांजलि श्री की पहचान और अपनेपन के उपन्यास 'Tomb of Sand' की शक्ति, मार्मिकता और चंचलता से मोहित हो गए। उन्होंने कहा, यह भारत के विभाजन का एक चमकदार उपन्यास है, जिसकी मंत्रमुग्धता, करुणा युवा उम्र, पुरुष और महिला, परिवार और राष्ट्र को कई आयाम में ले जाती है।


गीतांजलि श्री के इस उपन्यास को निर्णायक मंडल ने 'अनूठा' बताया है। दरअसल यह उपन्यास ठहरकर पढ़े जाने वाला उपन्यास है जिसकी एक कथा के धागे से कई सारे धागे बंधे हुए हैं। यह कहानी है 80 साल की एक दादी की, जो बिस्तर से उठना नहीं चाहती और जब उठती है तो सब कुछ नया हो जाता है। यहां तक कि दादी भी नयी, वो सरहद को निरर्थक बना देती है।


इस उपन्यास में सबकुछ है; स्त्री है, स्त्रियों का मन है, पुरुष है, थर्ड जेंडर है, प्रेम है, नाते हैं, समय है, समय को बांधने वाली छड़ी है, अविभाजित भारत है, विभाजन के बाद की तस्वीर है, जीवन का अंतिम चरण है, उस चरण में अनिच्छा से लेकर इच्छा का संचार है, मनोविज्ञान है, सरहद है, कौवे हैं, हास्य है, बहुत लंबे वाक्य हैं, बहुत छोटे वाक्य हैं, जीवन है, मृत्यु है और विमर्श है जो बहुत गहरा है, जो 'बातों का सच' है।


बुकर पुरस्कार जीतने के बाद क्या कहा गीतांजलि श्री ने

बुकर पुरस्कार जीतने के बाद गीतांजलि श्री ने कहा, "मैंने कभी बुकर प्राइज़ जीतने की कल्पना नहीं की थी। कभी सोचा ही नहीं कि मैं ये कर सकती हूँ। ये एक बड़ा पुरस्कार है और इसे जितने के बाद मैं हैरान, प्रसन्न , सम्मानित और विनम्र महसूस कर रही हूँ।"


इसके साथ ही उन्होंने कहा, "मैं और ये पुस्तक (रेत समाधि) दक्षिण एशियाई भाषाओं (विशेष तौर पर हिंदी) में एक समृद्ध साहित्यिक परंपरा से जुड़े हैं। यह पुरस्कार जीतने के बाद मुझे विश्वास है कि अब विश्व साहित्य इन भाषाओं के कुछ बेहतरीन लेखकों एवं साहित्यिक रचनाओं से परिचित होकर समृद्ध होगा।"


कौन हैं गीतांजलि श्री और उनकी अनुवादक डेज़ी रॉकवेल?

गीतांजलि श्री मूल रूप से उत्तर प्रदेश के मैनपुरी की रहने वाली हैं, लेकिन इस समय दिल्ली में रह रही हैं। गीतांजलि तीन उपन्यास और कई कथा संग्रह की लेखिका हैं। उनकी कृतियों का अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, सर्बियन और कोरियन भाषाओं में अनुवाद हुआ है। गीतांजलि श्री पिछले तीन दशक से लेखन की दुनिया में सक्रिय हैं। उनका पहला उपन्यास 'माई' और फिर 'हमारा शहर उस बरस' 1990 के दशक में प्रकाशित हुए थे।गीतांजलि श्री के उपन्यास 'माई' का अंग्रेजी अनुवाद 'क्रॉसवर्ड अवॉर्ड' के लिए भी नामित हुआ था।


64 वर्षीय लेखिका गीतांजलि श्री की अनुवादक डेजी रॉकवेल एक पेंटर एवं लेखिका हैं जो अमेरिका में रहती हैं। उन्होंने हिंदी और उर्दू की कई साहित्यिक कृतियों का अनुवाद किया है।अमेरिका में रहने वाली डेज़ी हिंदी साहित्य समेत कई भाषाओं और उसके साहित्य पर पकड़ रखती हैं। उन्होंने अपनी PhD उपेंद्रनाथ अश्क के उपन्यास 'गिरती दीवारें' पर की है। उन्होंने उपेंद्रनाथ अश्क से लेकर खादीजा मस्तूर, भीष्म साहनी, उषा प्रियंवदा और कृष्णा सोबती के उपन्यासों का अनुवाद भी किया है।


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