73वां संविधान संशोधन कब हुआ था? जानिए क्या हैं इसकी विशेषताएं

73वां संविधान संशोधन 1992


73वां संविधान संशोधन 

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि 26 जनवरी 1950 को हमारे देश भारत का जो संविधान लागू हुआ था, उसमे दो प्रकार की सरकारों का प्रावधान किया गया था- केंद्र सरकार और राज्य सरकार। 


संविधान के भाग 5 में संघ का विवरण दिया गया है अर्थात इसमें केंद्र सरकार की संरचना, शक्तियां एवं प्रभाव की विवेचना की गई है जबकि भाग 6 में राज्य सरकार का विवरण शामिल है। इस प्रकार पहली सरकार केंद्र सरकार तथा दूसरी सरकार राज्य सरकार है।


तीसरी सरकार की आवश्यकता

एक लम्बे समय इन्ही दोनों सरकारों के जरिए हमारे देश का शासन चलता रहा। हालांकि इस दौरान एक तीसरी प्रकार की सरकार की आवश्यकता और मांग आजादी से पहले व आजादी के बाद देश के सभी प्रमुख राष्ट्रनिर्माताओ एवं सामाजिक विचारकों द्वारा बराबर की जाती रही है। 


इन विचारकों का कहना था कि भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में आम जनमानस तक विकास की योजनाओं की पहुंच सुलभ बनाने के लिए देश में एक तीसरी सरकार की भी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे आम जनमानस का देश की मुख्यधारा से सीधा जुड़ाव हो सके। केंद्र एवं राज्य सरकारों की योजनाएं गावों तक और आम जनमानस की आवाज केंद्र या राज्य सरकार तक आसानी से पहुंच सके। यह तीसरी प्रकार की सरकार ऐसी होनी चाहिए जो अपने आप में Self Dedicated हो, जो आम जनमानस द्वारा चुनी और नियंत्रित की जाए, जिसका मुखिया अपनी जनता के साथ हर पल रह सके, उनकी समस्याओं को जान सके और उनका निवारण भी करे।


73वां संविधान संशोधन कब हुआ था?

संविधान लागू होने के 42 वर्ष बाद वर्ष 1992 में 73वां संविधान संशोधन हुआ था, जिसके जरिए उस तीसरी प्रकार की सरकार का प्रावधान किया गया, जिसकी मांग अनेक विचारकों द्वारा हमारे देश के नीति निर्धारकों से दशकों से की जाती रही है। 


तीसरी प्रकार की सरकार का गठन

73वें संविधान संशोधन के जरिए संविधान के भाग 9 के अंतर्गत ग्राम पंचायत9 A के अंतर्गत नगरपालिका को Self-Government अर्थात अपनी सरकार का प्रावधान किया गया। इसी संशोधन के जरिए देश में पंचायती राज की स्थापना हुई।

 
इस प्रकार वर्ष 1994 पंचायतों को Self- Government अर्थात अपनी सरकार के रूप में पूर्ण संवैधानिक दर्जा देकर देश में नए सिरे से तीसरी सरकार की स्थापना की गई।  1992 में 73वें संविधान संशोधन के द्वारा ही इसे पूरा करना अब संभव हुआ है।


नीति निर्देशक तत्व के अंतर्गत अनुच्छेद 40 में भविष्य की जो संकल्पना की गई थी ,एक तरह से उसे ही समय और परिस्थिति की मांग एवं दबाव के फलस्वरूप मूर्तरूप देना पड़ा।


क्या है 73वें संविधान संशोधन की विशेषताएं

  • 73वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान में भाग-9 जोड़ा गया था।  
  • लोकतांत्रिक प्रणाली की बुनियादी इकाइयों के रूप में ग्राम सभाओं (ग्राम) को रखा गया जिसमें मतदाता के रूप में पंजीकृत सभी वयस्क सदस्य शामिल होते हैं।
  • अनुच्छेद 243B के जरिए उन राज्यों को छोड़कर जिनकी जनसंख्या 20 लाख से कम हो ग्राम, मध्यवर्ती (प्रखंड/तालुका/मंडल) और ज़िला स्तरों पर पंचायतों की त्रि-स्तरीय प्रणाली लागू की गई।
  • अनुच्छेद 243C के तहत सभी स्तरों पर सीटों को प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरा जाना है।


सीटों का आरक्षण:

  • इस संविधान संशोधन में अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिये सीटों का आरक्षण किया गया है तथा सभी स्तरों पर पंचायतों के अध्यक्ष के पद भी जनसंख्या में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अनुपात के आधार पर आरक्षित किये गए हैं।
  • उपलब्ध सीटों की कुल संख्या में से एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिये आरक्षित हैं।
  • सभी स्तरों पर अध्यक्षों के एक तिहाई पद महिलाओं के लिये भी आरक्षित हैं (अनुच्छेद 243D)।


कार्यकाल:

  • पंचायतों का कार्यकाल पाँच वर्ष निर्धारित है लेकिन कार्यकाल से पहले भी इसे भंग किया जा सकता है। 
  • अनुच्छेद 243E के अनुसार पंचायतों के नए चुनाव कार्यकाल की अवधि की समाप्ति या पंचायत भंग होने की तिथि से 6 महीने के भीतर ही करा लिये जाने चाहिये।
  • अनुच्छेद 243K के तहत मतदाता सूची के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण के लिये प्रत्येक राज्य में स्वतंत्र चुनाव आयोग होंगे।


पंचायतों की शक्ति (अनुच्छेद 243G):

पंचायतों को ग्यारहवीं अनुसूची में वर्णित विषयों के संबंध में आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय की योजना तैयार करने के लिये अधिकृत किया गया है।


राजस्व का स्रोत (अनुच्छेद 243H): 

राज्य विधायिका पंचायतों को अधिकृत कर सकती है-

  • राज्य के राजस्व से बजटीय आवंटन।
  • कुछ करों के राजस्व का हिस्सा।
  • राजस्व का संग्रह और प्रतिधारण।


वित्त आयोग (अनुच्छेद 243I):

प्रत्येक राज्य में एक वित्त आयोग का गठन करना ताकि उन सिद्धांतों का निर्धारण किया जा सके जिनके आधार पर पंचायतों और नगरपालिकाओं के लिये पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित की जाएगी।


छूट:

यह अधिनियम सामाजिक-सांस्कृतिक और प्रशासनिक कारणों से नगालैंड, मेघालय तथा मिज़ोरम एवं कुछ अन्य क्षेत्रों में लागू नहीं होता है। इन क्षेत्रों में शामिल हैं:

  • आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा और राजस्थान राज्यों में पाँचवीं अनुसूची के तहत सूचीबद्ध अनुसूचित क्षेत्र।
  • मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्र जिसके लिये जिला परिषदें मौजूद हैं।
  • पश्चिम बंगाल राज्य में दार्जिलिंग ज़िले के पहाड़ी क्षेत्र जिनके लिये दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल मौजूद है।

संसद ने पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996 [The Provisions of the Panchayats (Extension to the Scheduled Areas) Act-PESA] के माध्यम से भाग 9 और 5वीं अनुसूची क्षेत्रों के प्रावधानों को बढ़ाया है।


उपसंहार

लेकिन जैसा कि आप सब अवगत है कि इस तीसरी सरकार की स्थापना के लगभग 20 वर्ष बीत जाने के बाद भी वह सही अर्थो में सरकार तो बन नहीं पाई बल्कि तथाकथित विकास की बदनाम एजेंसी या एजेंट के रूप में अधिक जानी जा रही है। यह एक और संवैधानिक संस्था बनने की बजाय एक व्यक्ति का संगठन बनकर रह गई है। इसके लिए जहाँ एक तरफ कुछ अधिनियम गत कमियां है वही दूसरी ओर यह आजतक सामान्यजन के विचार व भाव में अपनी सरकार का स्थान नहीं ले पाई है। जिसके चलते लोगो का कोई जुड़ाव तथा रूचि इसके प्रति नहीं बन पाई।

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