भारत में राष्ट्रपति की संवैधानिक स्थिति क्या है | भारतीय गणराज्य का संवैधानिक और कार्यकारी प्रमुख कौन है

नमस्कार दोस्तों, आनंद सर्किल में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। आज इस आलेख में हम भारतीय राष्ट्रपति की भारतीय संविधान के अंतर्गत संवैधानिक स्थिति पर चर्चा करेंगे। इस आलेख की सहायता से हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि भारत के राष्ट्रपति की अमेरिका और ब्रिटेन जैसे लोकतांत्रिक देशों के कार्यकारी प्रमुखों की तुलना में कैसी संवैधानिक स्थिति है।


भारतीय गणराज्य के राष्ट्रपति की संवैधानिक स्थिति को समझने के लिए सबसे पहले हम यह जानते हैं कि भारत के संविधान के किस अनुच्छेद में राष्ट्रपति पद का प्रावधान किया गया है? 


भारतीय संविधान में अनुच्छेद 53 के तहत राष्ट्रपति पद का प्रावधान किया गया है, जिसके अनुसार संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी और राष्ट्रपति इसका प्रयोग स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों की सलाह से करेगा।


इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 74 के अनुसार राष्ट्रपति को सहायता एवं सलाह देने के लिए प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली एक मंत्रीपरिषद होगी और राष्ट्रपति अपने कार्यों एवं कर्तव्यों का निर्वहन इसी मंत्रिपरिषद की सलाह पर करेगा।


संविधान के अनुच्छेद 75 के अनुसार यह मंत्रिमंडल सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदाई होगी। संविधान की यह व्यवस्था (उपबंध) भारतीय शासन व्यवस्था में एक मजबूत एवं सुव्यवस्थित संघीय व्यवस्था या संसदीय व्यवस्था की स्थापना करती है।



भारत सरकार का स्वरूप

इस प्रकार हम देखते हैं कि भारतीय संविधान में भारत सरकार का स्वरूप संसदीय है। इस कारण भारत का राष्ट्रपति भारत सरकार का केवल कार्यकारी प्रमुख होता है, अर्थात भारत सरकार अपने सारे काम राष्ट्रपति के नाम से ही करती है परंतु राष्ट्रपति की भूमिका इसमें बहुत ही सीमित होती है। वास्तव में राष्ट्रपति स्वतंत्र रूप से अपने विवेक का प्रयोग करते हुए किसी भी प्रकार के निर्णय लेने को स्वतंत्र नहीं होता है। राष्ट्रपति अपना प्रशासन प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिमंडल की सलाह से ही चलाता है। भारतीय संसद की मुख्य शक्तियां प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल में ही निहित होती है।


दूसरे शब्दों में इस प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं कि राष्ट्रपति अपनी कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिमंडल की सलाह से और उसकी सहायता से करता है।



संविधान सभा में डॉ० भीमराव अंबेडकर ने राष्ट्रपति की वास्तविक स्थिति को स्पष्ट करते हुए बताया है कि भारतीय संविधान में भारतीय संघ के कार्यकलापों का एक प्रमुख होगा, जिसे भारतीय संघ का राष्ट्रपति कहा जाएगा। 


भारतीय राष्ट्रपति की स्थिति 

यह उपाधि हमें अमेरिका व अन्य कुछ लोकतांत्रिक देशों के राष्ट्रपति पद की याद दिलाती है, परंतु भारत के राष्ट्रपति की भूमिका एवं शक्तियां अमेरिका और अन्य कुछ लोकतांत्रिक देशों के राष्ट्रपति की भांति नहीं है, बल्कि भारतीय संविधान के अंतर्गत राष्ट्रपति की संवैधानिक स्थिति वही है जो ब्रिटिश संविधान के अंतर्गत ब्रिटेन के राजा की है। 

जिस प्रकार से ब्रिटेन का राजा सरकार का कार्यकारी प्रमुख तो होता है परंतु वह स्वतंत्र रूप से कोई निर्णय नहीं ले सकता। वह राष्ट्र का प्रतिनिधित्व तो करता है परंतु राष्ट्र पर शासन नहीं कर सकता। वह राष्ट्र का प्रतीक तो है परंतु वह केवल प्रशासन में औपचारिक रूप से ही सम्मिलित है, केवल एक मुहर के रूप में, एक हस्ताक्षरकर्ता के रूप में, जिसके नाम पर उस राष्ट्र में निर्णय तो लिए जाते हैं परंतु वह स्वयं कोई निर्णय स्वतंत्र रूप से नहीं ले सकता। वह अपने निर्णयों के लिए, अपने आदेशों के लिए अपनी मंत्रिपरिषद पर ही निर्भर है। 

अमेरिका का राष्ट्रपति अपने किसी भी सचिव को किसी भी अधिकारी को बिना किसी दबाव के, बिना किसी सलाह के स्वयं हटा सकता है या किसी को नियुक्त कर सकता है परंतु भारत का राष्ट्रपति ऐसा कोई निर्णय नहीं ले सकता, जब तक कि उसके मंत्रियों का संसद में बहुमत ना हो।



इस प्रकार हम देखते हैं कि नाम में समानता के अतिरिक्त अमेरिका व अन्य कुछ लोकतांत्रिक अथवा कम्यूनिष्ट देशों में प्रचलित सरकार एवं भारतीय संविधान के अंतर्गत अपनाई गई लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में कोई अन्य समानता नहीं है। सरकार की अमेरिकी व्यवस्था को राष्ट्रपति व्यवस्था कहा जाता है जबकि भारतीय व्यवस्था को संसदीय व्यवस्था और इसी प्रकार की व्यवस्था ब्रिटेन में भी है और अन्य कुछ लोकतांत्रिक देशों में भी।
भारतीय राष्ट्रपति के पास विवेक के आधार पर निर्णय लेने की संवैधानिक स्वतंत्रता

वैसे तो भारतीय राष्ट्रपति के पास कोई विशेष संवैधानिक स्वतंत्रता नहीं है अर्थात राष्ट्रपति के पास अपने विवेक के आधार पर स्वतंत्रता पूर्वक किसी प्रकार के निर्णय लेने की स्वतंत्रता तो नहीं है परंतु कुछ परिस्थितियों के अनुसार विवेक के आधार पर कुछ निर्णय लेने की स्वतंत्रता संविधान के तहत भारतीय राष्ट्रपति को दी गई है। कुछ विशेष परिस्थितियों में भारतीय राष्ट्रपति अपने विवेक का स्वतंत्रता पूर्वक प्रयोग करते हुए बिना मंत्रिपरिषद की सलाह पर निर्णय ले सकता है। 

उदाहरणार्थ 

(i) यदि लोकसभा में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त ना हुआ हो अथवा अचानक से प्रधानमंत्री की मृत्यु हो जाए और उसका कोई स्पष्ट उत्तराधिकारी ना मिल रहा हो तो राष्ट्रपति अपने विवेक के आधार पर प्रधानमंत्री की नियुक्ति कर सकता है।
(ii) यदि मंत्रिमंडल सदन में अपना विश्वास मत सिद्ध नहीं कर पाता है तो राष्ट्रपति मंत्रिमंडल को विघटित कर सकता है।
(iii) भारत का राष्ट्रपति लोक सभा को भी भंग कर सकता है, यदि मंत्रिमंडल ने संसद में अपना बहुमत खो दिया हो।

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