राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति | किस अनुच्छेद के तहत राष्ट्रपति अध्यादेश जारी करता है

नमस्कार दोस्तों आनंद सर्किल में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। आज इस आलेख में हम भारत के राष्ट्रपति की किसी विषय पर अध्यादेश जारी करने की शक्तियों एवं उनके द्वारा जारी किए गए अध्यादेश का प्रभाव, उसका महत्व, अध्यादेश जारी करने की सीमाएं आदि विषयों पर अध्ययन करेंगे।
संविधान में भारतीय गणराज्य के राष्ट्रपति को कुछ शक्तियां ऐसी दी गई हैं जो दुनिया के अन्य बड़े लोकतंत्रों जैसे अमेरिका और ब्रिटेन आदि के राष्ट्रपतियों के पास भी नहीं है। उन्हीं में से एक है राष्ट्रपति द्वारा किसी विषय पर अध्यादेश जारी करने की शक्ति।
पिछले आलेख में हमने यह जाना था कि भारत के राष्ट्रपति को संविधान द्वारा दिया गया वीटो करने का अधिकार अमेरिका के राष्ट्रपति से कुछ विषयों पर अधिक है अर्थात भारत के राष्ट्रपति को कुछ विषयों पर अमेरिका के राष्ट्रपति से अधिक शक्तियां प्राप्त हैं। उसी प्रकार इस आलेख में हम राष्ट्रपति के अध्यादेश जारी करने की शक्ति को जानेंगे। 


संविधान द्वारा राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने की शक्ति दिए जाने के पक्ष में संविधान निर्माता सदस्यों में से एक डॉ० भीमराव अंबेडकर ने संविधान सभा में कहा था कि राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने की शक्तियां देने से राष्ट्रपति उन परिस्थितियों से निपटने के लिए योग्य हो जाता है जो आकस्मिक उत्पन्न होती हैं, जिस समय संसद का सत्र नहीं चल रहा होता है अर्थात कुछ ऐसी घटनाएं कुछ ऐसी परिस्थितियां अचानक से उत्पन्न हो जाए, जब हमें कानून की आवश्यकता हो परंतु संसद का अधिवेशन ना चल रहा हो तो उस समय वैकल्पिक तौर पर राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर एक तत्कालीन कानून की व्यवस्था कर सकता है परंतु यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि इस प्रकार से जारी किया गया अध्यादेश पूरी तरह से संसद द्वारा बनाए गए कानून के समान तो होता है परंतु समय अवधि अल्प होती है। यह संसद के संयुक्त अधिवेशन की तिथि या दूसरे सदन के अधिवेशन (यदि सदन के अधिवेशन अलग अलग हों) की तिथि से 6 सप्ताह तक (यदि सदन से पारित नहीं हो पाता है) मान्य होता है।



किस अनुच्छेद के तहत राष्ट्रपति अध्यादेश जारी करता है?
भारत के राष्ट्रपति को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत आकस्मिक परिस्थितियों से निपटने के लिए संसद के सत्रावसान की अवधि में अर्थात जब संसद का अधिवेशन ना चल रहा हो, उस दौरान अध्यादेश जारी करने की शक्तियां प्रदान की गई हैं। इस प्रकार अध्यादेश के जरिए प्रभाव में लाया गया कानून पूरी तरह से संसद के द्वारा बनाए गए कानून के समान ही होता है। इस अध्यादेश के द्वारा बनाए गए कानून की शक्तियां, उसके प्रभाव सब कुछ पूरी तरह से संसद के द्वारा बनाए गए कानून के समान होते हैं परंतु इस अध्यादेश की कार्य अवधि अल्प होती है और इसे संसद के अगले अधिवेशन में संसद के दोनों सदनों से पारित करवाना अनिवार्य होता है। साथ ही लोकसभा में जब इससे संबंधित विधेयक प्रस्तुत किया जाता है तो अध्यादेश जारी करने के कारण, परिस्थितियां आदि सभी चीजों का वर्णन करना होता है कि किस कारण से अध्यादेश जारी किया गया? इसका स्पष्टीकरण लोकसभा में देना अनिवार्य होता है।

क्या राष्ट्रपति अध्यादेश जारी करने को स्वतंत्र है?
राष्ट्रपति किसी विषय पर कानून बनाने के लिए स्वयं अध्यादेश जारी नहीं कर सकता है। अध्यादेश भले ही राष्ट्रपति के नाम से और राष्ट्रपति के द्वारा जारी किया जाता है परंतु इसमें राष्ट्रपति की भूमिका सिर्फ एक वक्ता की होती है। राष्ट्रपति प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल की सलाह से ही अध्यादेश जारी अथवा निरस्त करता है। इसलिए राष्ट्रपति अध्यादेश जारी करने को स्वतंत्र नहीं है।


राष्ट्रपति द्वारा अध्यादेश जारी करने की सीमाएं
1. राष्ट्रपति को किसी आकस्मिक परिस्थिति से निपटने के लिए अध्यादेश जारी करने की शक्ति वैकल्पिक दी गई है, इसका प्रयोग संसद के विकल्प के तौर पर नहीं किया जा सकता। यह केवल राष्ट्रपति को उस समय से निपटने के योग्य बनाती है जब किसी विषय पर एक कानून की आवश्यकता हो और उस समय संसद के दोनों सदनों का अधिवेशन ना चल रहा हो या फिर किसी एक सदन का अधिवेशन चल रहा हो, दूसरे का नही। क्योंकि किसी विधेयक के कानून बनने के लिए उसे संसद के दोनों सदनों से पारित होना अनिवार्य होता है। इसलिए इन परिस्थितियों में कानून की आवश्यकता पूर्ण करने के लिए एक अल्प अवधि कानून अध्यादेश के जरिए बनाया जा सकता है। परंतु यदि संसद के दोनों सदनों का अधिवेशन चल रहा हो तो उस समय जारी किया गया अध्यादेश अमान्य होता है। 

2. राष्ट्रपति किसी विषय पर अध्यादेश तभी जारी कर सकता है, जब वह इस बात से पूर्णत: संतुष्ट हो कि मौजूदा परिस्थिति ऐसी है कि उसके लिए तत्काल किसी कानून की आवश्यकता है।
कूपर बनाम भारत सरकार केस, 1970 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि "राष्ट्रपति की संतुष्टि पर  असद्भाव के आधार पर प्रश्नचिह्न लगाया जा सकता है अर्थात यदि संसद को ऐसा लगे कि राष्ट्रपति ने विचारपूर्वक संसद के एक सदन अथवा दोनों सदनों के अधिवेशन को अध्यादेश जारी करने के उद्देश्य से कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया है और संसद की गरिमा का तथा संविधान की मर्यादा का उल्लंघन किया है, तो उसके अध्यादेश जारी करने के निर्णय को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।

Note: 38वें संविधान संशोधन, 1975 में यह प्रावधान किया गया था कि राष्ट्रपति की संतुष्टि अंतिम और सर्वमान्य होगी तथा इसे न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकेगी परंतु कुछ समय बाद 44वें संविधान संशोधन, 1976 में इस उपबंध को हटा दिया गया। अतः पुनः राष्ट्रपति की संतुष्टि को  असद्भाव के आधार पर न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।

3. चूंकि राष्ट्रपति के द्वारा जारी किया गया अध्यादेश केवल समय अवधि को छोड़कर पूरी तरह से संसद के द्वारा बनाए गए कानून के समान ही प्रभावी होता है तो उस पर संसद के द्वारा बनाए जाने वाले कानून की मर्यादाएं भी लागू होती हैं। जैसे कि - 
  • अध्यादेश केवल उन्हीं मुद्दों पर जारी किया जा सकता है, जिस पर संसद के जरिए कानून बनाना संभव हो।
  • अध्यादेश पर मौलिक अधिकारों के लिए वही संविधानिक सीमाएं होती हैं जो संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून की होती हैं। इसलिए जिस प्रकार से संसद द्वारा कानून बनाकर किसी विषय पर नागरिकों के मौलिक अधिकार का हनन या लघुकरण नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार अध्यादेश के जरिए भी नागरिकों के मौलिक अधिकार का हनन या लघुकरण नहीं किया जा सकता।

4. संसद के सत्रावसान की अवधि में जारी किए गए प्रत्येक अध्यादेश से संबंधित विधेयक संसद के दोनों सदनों की होने वाली अगली बैठक में दोनों सदनों में प्रस्तुत किए जाने चाहिए। यदि संसद के दोनों सदन उस अध्यादेश से संबंधित विधेयक को पारित कर देते हैं तो वह विधेयक कानून का रूप ले लेता है परंतु यदि संसद इस विषय पर कोई कार्यवाई नहीं करती है अर्थात संसद में इस विधेयक से संबंधित कोई चर्चा नहीं होती है या संसद के दोनों सदनों से यह विधेयक पारित नहीं हो पाता है तो इस अधिवेशन के ठीक 6 सप्ताह पश्चात यह अध्यादेश स्वत: समाप्त हो जाएगा। इसके अलावा यदि संसद में इस अध्यादेश से संबंधित विधेयक को अस्वीकार कर दिया जाता है तो यह अध्यादेश उसी समय से समाप्त हो जाएगा और इस दौरान अध्यादेश के जरिए किए गए सभी विधिक कार्य मान्य होंगे। यदि संसद के दोनों सदनों की बैठक एक साथ ना होकर अलग-अलग अवधि में हो तो यह अध्यादेश दूसरी बैठक की तिथि के 6 सप्ताह बाद समाप्त होगा। चूंकि संसद के दो सदनों की बैठक में अधिकतम 6 माह का अंतर हो सकता है इसलिए कोई भी अध्यादेश अधिकतम 6 माह तक ही मान्य होंगे और मंजूरी न मिलने की स्थिति में दूसरी बैठक की तिथि से 6 सप्ताह तक।

5. संविधान संशोधन संबंधित विषय पर राष्ट्रपति द्वारा अध्यादेश जारी नहीं किया जा सकता है।

राष्ट्रपति द्वारा जारी किया गया कोई भी अध्यादेश संसद द्वारा बनाए गए कानून के समान ही होता है, इसलिए यह संसद द्वारा बनाए गए कानून के समान पूर्ववर्ती भी हो सकता है अर्थात इसे पिछली तिथि से भी लागू किया जा सकता है। राष्ट्रपति के द्वारा जारी किए गए अध्यादेश के जरिए संसद के किसी भी कार्य, कानून या अन्य अध्यादेश को संशोधित अथवा निरस्त किया जा सकता है। इसके जरिए टैक्स विधि को भी परिवर्तित अथवा संशोधित किया जा सकता है।

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