कुवैत की मुस्लिम महिलाओं का योग पर प्रतिबंध के खिलाफ सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन, भारत में हिजाब विवाद का किया जा रहा राजनीतीकरण


मुस्लिम देश कुवैत में मुस्लिम महिलाएं सरकार द्वारा योग पर प्रतिबंध लगाए जाने का सर्द रातों में सड़कों पर सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन कर रही हैं, साथ में कुछ पुरुष भी हैं और इनमे से एक दो को छोड़कर किसी ने हिजाब भी नही पहना है जबकि यहां भारत में सभी महिलाओं को चाहे वो हिंदू हों या मुस्लिम, संविधान द्वारा इतनी अधिक छूट दी गई है कि वे सभी प्रकार के खुलेपन का जीवन जी सकती हैं, योग भी कर सकती हैं, नौकरी भी कर सकती हैं, डॉक्टर और इंजीनियर भी बन सकती हैं, अभिनय भी कर सकती हैं और राजनीति भी। फिर भी इस खुलापन और आजादी का विरोध किया जा रहा है। पुरुष करें तो एक बार समझा जा सकता है कि वे अभी भी पुरुष प्रधान समाज ही चाहते हैं, महिलाओं को खुद से आगे बढ़ते नही देख सकते। न ही खुद पढ़ना चाहते हैं और न ही उन्हें शिक्षित होने देना चाहते हैं पर जब इन सबका विरोध महिलाएं स्वयं करने लगती हैं तब देख कर आश्चर्य होता है कि इतनी अधिक छूट इतनी अधिक आजादी मिलने के बाद भी स्वयं बंदिशों में रहना पसंद करती हैं।
 यहीं कुवैत में जो एक मुस्लिम देश है यहां की महिलाएं योग करने के लिए सरकार से लड़ रही हैं, सरकार जो अभी भी कट्टरपंथी सोच पर चल रही है जहां अभी भी महिलाओं को भोग की वस्तु समझा जाता है, जहां अभी भी पुरुष प्रधान समाज है, वहां की महिलाएं सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन कर रही हैं। जबकि इस्लाम में योग को भी हराम माना जाता है। क्या योग किसी धर्म विशेष का धार्मिक आचरण है? योग तो एक प्रकार का शारीरिक एवं मानसिक व्यायाम है, वो भी वैज्ञानिकों द्वारा प्रमाणित भी, जिसके द्वारा हम स्वयं को शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रखते हैं।


  सऊदी अरब में जो खुद एक मुस्लिम देश है और इस्लाम का उत्थान, प्रसार और विकास भी इसी सऊदी में हुआ है, वहां भी महिलाओं को धीरे धीरे आजादी दी जा रही है, बंदिशें समाप्त की जा रही हैं। अफगानिस्तान को सब देख ही रहे हैं, वहां पर महिलाएं तालिबान के खिलाफ किस प्रकार से प्रदर्शन कर रही हैं, तालिबानी बंदिशों को मानने से इंकार कर रही हैं। 
यहां इन लोगों का सौभाग्य है, जो इन्हे भारत में रहने का मौका मिला। इनके पूर्वजों ने भारत की भूमि को चुना था कि यहां पर समान रूप से प्रगति के अवसर मिलेंगे परंतु यह लोग प्रगति चाहते ही नहीं है जैसे। विरोध करना चाहिए तब जब सरकार उनके अधिकारों का हनन करें और जब पूरी तरह से छूट दी गई है अपने सभी धार्मिक आचरणों को हर जगह व्यक्त करने की, स्वच्छंदतापूर्वक मानने की, व्यवहार करने की, फिर भी इस मुद्दे का इतना अधिक राजनीतिकरण कर दिया जा रहा है कि जैसे लग रहा है सरकार ने हिजाब पर बैन ही लगा दिया जबकि कोई भी सरकारी आदेश ऐसा नहीं है कि कहीं भी हिजाब पर बैन लगाया गया हो। सिर्फ विद्यालय का ड्रेस कोड है, वह भी केवल क्लास में पहने को मना किया गया है और ऐसा हर जगह होता है। पूरे भारत में कहीं भी कोई कक्षा के अंदर हिजाब नहीं पहनता, क्लास से बाहर, कैंपस में, सड़कों पर पहनने की पूरी छूट है फिर भी बेमतलब का विरोध प्रदर्शन और सारे विरोध प्रदर्शन राजनीति से ही प्रेरित हैं।
क्रिश्चियन कॉलेजों में तो हाथ में कलावा धागा बांधने की भी छूट नहीं है, फिर भी वहां कोई विरोध नहीं करता। कोई भी विद्यालय जो नियम बनाता है सभी उसका पालन करते हैं, फिर भी राजनीतिक पार्टियां जानबूझकर इस मुद्दे को भड़का रही हैं क्योंकि इसी के आधार पर उन्हें वोट मिलना है। ये सब केवल मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण करने का प्रयास है। 


मुस्लिमों को समझना चाहिए कि राजनीतिक पार्टियों के भड़काने पर ये लोग जिस प्रकार का प्रदर्शन कर रहे हैं, कुछ प्राप्त होने वाला नहीं है। एक राष्ट्र वह भी भारत जैसा बहु सांस्कृतिक राष्ट्र इस प्रकार से कट्टरता से, तुष्टीकरण से या विरोध प्रदर्शनों से नहीं चल सकता। इन्हे अपने आप को किसी का हथियार बनने से रोकने के लिए स्वयं के विवेक का प्रयोग करना आवश्यक है वरना यह राजनीतिक पार्टियां मुस्लिमों को केवल राजनीतिक हथियार बनाकर ही छोड़ेंगी और इसीलिए ये राजनीतिक पार्टियां, कुछ कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन और कुछ कट्टरपंथी मौलवी चाहते भी नही हैं कि मुस्लिम पुरुष हो या महिलाएं, शिक्षित हो सके क्योंकि वह भी जानते हैं कि यदि ये लोग शिक्षित हो जाएंगे तो इनके अंदर से कट्टरता समाप्त हो जाएगी, ये भी राष्ट्र के निर्माण में, राष्ट्र के हित में योगदान देंगे। इसीलिए जानबूझकर ये लोग उन्हें शिक्षित नहीं होने देना चाहते हैं, चाहे वह कांग्रेस हो, ओवैसी हों, समाजवादी पार्टी हो या कोई भी अन्य मुस्लिम हितैषी बनने वाली राजनीतिक पार्टियां। ये सभी केवल चुनाव के वक्त ही मुस्लिमों को साधने का प्रयास करती हैं। यदि समय चुनाव ना चल रहा होता तो हिजाब नामक कोई विवाद होता ही नहीं परंतु ये सब केवल राजनीति के लिए किया जा रहा है। 
शाहरुख खान, आमिर खान, जावेद अख्तर की बेटियां, राणा अय्यूब, आरफा खानम शेरवानी, सारी मुस्लिम अभिनेत्रियां, खिलाड़ी कोई भी खुद हिजाब नहीं पहनता, हिजाब तो क्या ये लोग जितने वस्त्र पहन लेती हैं, वो भी इन्हे अधिक लगता है, बुर्का तो बहुत दूर की बात है फिर भी वो लोग इन लोगों को इसे उनका धार्मिक अधिकार बताती फिर रही हैं। जो मुस्लिम पुरुष हिजाब को औरतों का अधिकार बताते फिर रहे हैं, उनमें से अधिकतर खुद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर महिलाओं की फोटोग्राफ्स को ऐसी नजरों से देखते हैं कि उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। और यदि हिजाब के समर्थन में दिए जा उनके बयानों को आधार माना जाए तब तो इन्हे हिंदू महिलाओं से प्रेम संबंध ही नही रखना चाहिए, फिर ये लव जिहाद जैसी घटनाएं ही नहीं होंगी। 
यदि विवेक पूर्वक मुस्लिम समाज विचार करे कि आखिर यह सब चुनाव के समय ही क्यों हो रहा है, इसके पहले ऐसा मुद्दा क्यों नहीं उठा जबकि क्लास में हिजाब तो पहले से ही बंद था, पहले से ही लड़कियां क्लास में हिजाब नहीं पहनती थी, क्लास के बाहर ही पहनती थी फिर अचानक से क्लास के अंदर पहनने को जिद क्यों करने लगीं। शिक्षित समाज को ये सब समझने की जरूरत है, कट्टरपंथियों और अशिक्षित समाज के बहकावे में आकर अपनी शिक्षा का, अपने ज्ञान का, अपने विवेक का दुरुपयोग करने से, उसे नष्ट होने से बचाने के लिए सावधानीपूर्वक विचार करके ही कोई कार्य, कोई भी निर्णय करना चाहिए। कुरान की आयतों का दुष्प्रचार करने वालों के हाथों की कठपुतलियां बनने से पहले इन्हें स्वयं कुरान की आयतों का विवेक पूर्वक अध्ययन करके सही अर्थ निकालना चाहिए और उस सही अर्थ को लोगों में प्रसारित करना चाहिए। कोई क्या कह रहा है, क्या कर रहा है इससे महत्व न रखते हुए हम क्या कर रहे हैं, हमें क्या करना चाहिए और हमारे द्वारा किया गया कार्य कितना उचित है, यह सोचना चाहिए।

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