भारत के संविधान में औपचारिक रूप से संघ की कार्यपालिका की शक्तियाँ राष्ट्रपति को दी गयी है, परन्तु वास्तव में राष्ट्रपति केवल कागजों में भारत का संवैधानिक प्रमुख है, वह कोई भी कार्य स्वयं नहीं कर सकता। वह प्रधानमंत्री के नेतृत्व में बनी मंत्रिपरिषद् के माध्यम से अपनी इन शक्तियों का प्रयोग करता है। इस प्रकार भारत का वास्तविक कार्यकारी प्रमुख प्रधानमंत्री होता है जबकि संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति।
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा मंत्री परिषद सभी को पाँच वर्ष के लिए चुना जाता है, लेकिन राष्ट्रपति के पद पर किसी का निर्वाचन जनता के द्वारा नहीं होता। उसका निर्वाचन अप्रत्यक्ष तरीके से होता है अर्थात् राष्ट्रपति का निर्वाचन आम नागरिक नहीं बल्कि निर्वाचित विधायक और सांसद करते हैं।यह निर्वाचन समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली और एकल संक्रमणीय मत के सिद्धांत के अनुसार होता है।
केवल संसद ही राष्ट्रपति को महाभियोग की प्रक्रिया के द्वारा उसे पद से हटा सकती है। महाभियोग केवल संविधान के उल्लंघन के आधार पर लगाया जा सकता है।
संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों के अनुसार राष्ट्रपति पद, निर्वाचन, राष्ट्रपति की शक्तियां एवं राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रक्रिया
भारत का राष्ट्रपति
अनुच्छेद 52 – भारत का एक राष्ट्रपति होगा
अनुच्छेद 53 –(1) संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी और वह इसका प्रयोग इस संविधान के अनुसार मंत्रिपरिषद के माध्यम से करेगा।
(2) राष्ट्र के सुरक्षा बलों का सर्वोच्च सेनापति राष्ट्रपति होगा और उसका प्रयोग विधि द्वारा विनियमित होगा।
राष्ट्रपति का निर्वाचन
अनुच्छेद 54 – राष्ट्रपति का निर्वाचन एक निर्वाचक मंडल के सदस्य करेंगे जिसमें-
(क) संसद् के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य
(ख) राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य तथा
(ग) केंद्र शासित प्रदेशों दिल्ली एवं पुदुचेरी की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य शामिल होंगे।
राष्ट्रपति के निर्वाचन की रीति
अनुच्छेद 55 –(क) राष्ट्रपति के निर्वाचन में भिन्न-भिन्न राज्यों के प्रतिनिधित्व में एकरूपता होगी ।
(ख) राष्ट्रपति के निर्वाचन में विभिन्न राज्यों का प्रतिनिधित्व समान रूप से होगा तथा इसके साथ ही सभी राज्यों एवं केंद्र के मध्य भी समानता होगी।
इसे प्राप्त करने के लिए राज्य विधानसभाओं तथा संसद के प्रत्येक सदस्य के मतों की संख्या निम्न प्रकार से निर्धारित होगी-
- किसी राज्य के निर्वाचित सदस्यों में से किसी एक विधायक के मत का मूल्य उस राज्य की कुल जनसंख्या में उस राज्य की विधानसभा के कुल निर्वाचित सदस्यों की संख्या और 1000 के गुणनफल से भाग देने पर प्राप्त होता है, अर्थात् एक विधायक के मत का मूल्य = राज्य की कुल जनसंख्या/(राज्य की विधानसभा के कुल निर्वाचित सदस्यों की संख्या*1000)
- यदि एक हजार के उक्त गुणितों को लेने के बाद शेष पांच सौ से कम नहीं है तो उपखंड (क) में निार्दिष्ट प्रत्येक सदस्य के मतों की संख्या में एक और जोड़ दिया जाएगा
- संसद के प्रत्येक सदन के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के मतों की संख्या राज्यों की विधान सभाओं के सदस्यों के कुल मतों की संख्या को, संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से भाग देने पर आए, जिसमें आधे से अधिक भिन्न को एक गिना जाएगा और अन्य भिन्नों की उपेक्षा की जाएगी ।
(ख) राष्ट्रपति का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होगा और ऐसे निर्वाचन में मतदान गुप्त होता है।
किसी उम्मीदवार को राष्ट्रपति के चुनाव में निर्वाचित होने के लिए मतों का एक निश्चित भाग प्राप्त करना आवश्यक है। मतों का यह निश्चित भाग, कुल वैध मतों की, निर्वाचित होने वाले कुल उम्मीदवारों की संख्या में एक जोड़कर प्राप्त संख्या द्वारा भाग देने पर भागफल में एक जोडकर प्राप्त होता है।
(यदि उम्मीदवार एक ही हो तो)
निश्चित मतों का भाग = कुल वैध मत/(1+1) +1
राष्ट्रपति की पदावधि(कार्यकाल)
️अनुच्छेद 56 – राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा :️परंतु–
(क) राष्ट्रपति अपने कार्यकाल के दौरान किसी भी समय उपराष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र दे सकता है,
(ख) संविधान का अतिक्रमण करने पर राष्ट्रपति को अनुच्छेद 61 में के तहत महाभियोग द्वारा पद से हटाया जा सकेगा।
(ग) राष्ट्रपति, अपने पद की अवधि समाप्त हो जाने पर भी, तब तक पद धारण करता रहेगा जब तक उसका उत्तराधिकारी अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता है ।
पुनर्निर्वाचन के लिए पात्रता
️अनुच्छेद 57 –
कोई व्यक्ति , जो राष्ट्रपति के रूप में पद धारण करता है या कर चुका है, इस संविधान के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए उस पद के लिए पुनर्निर्वाचन का पात्र होगा ।
राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिए योग्यता
अनुच्छेद 58 – कोई व्यक्ति राष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र तभी होगा जब वह–
(क) भारत का नागरिक है,
(ख) 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका है और
(ग) लोक सभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता है।
(घ) कोई व्यक्ति, जो भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन अथवा उक्त सरकारों में से किसी के नियंत्रण में किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है, राष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र नहीं होगा ।
Note–इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए , कोई व्यक्ति केवल इस कारण कोई लाभ का पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा कि वह संघ का राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति या किसी राज्य का राज्यपाल है अथवा संघ का या किसी राज्य का मंत्री है ।
राष्ट्रपति के पद के लिए शर्तें
️अनुच्छेद 59 –
(1) राष्ट्रपति संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा और यदि संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन का कोई सदस्य राष्ट्रपति निर्वाचित हो जाता है तो यह समझा जाएगा कि उसने उस सदन में अपना स्थान राष्ट्रपति के रूप में अपने पद ग्रहण की तारीख से रिक्त कर दिया है ।
(2) राष्ट्रपति अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा ।
(3) राष्ट्रपति , बिना किराया दिए, अपने शासकीय निवासों के उपयोग का हकदार होगा और ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का भी, जो संसद, विधि द्वारा निर्धारित करे और जब तक इस संबंध में संसद द्वारा कोई नया उपबंध नहीं किया जाता है तब तक ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का, जो दूसरी अनुसूची में निर्दिष्ट हैं, वह उसका हकदार होगा।
(4) राष्ट्रपति की उपलब्धियां और भत्ते उसकी पदावधि के दौरान कम नहीं किएं जाएंगे ।
राष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
️अनुच्छेद 60 – प्रत्येक राष्ट्रपति और प्रत्येक व्यक्ति, जो राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहा है या उसके कृत्यों का निर्वहन कर रहा है, अपना पद ग्रहण करने से पहले भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनकी अनुपस्थिति में उच्चतम न्यायालय के उपलब्ध ज्येष्ठतम (वरिष्ठ) न्यायाधीश के समक्ष निम्नलिखित प्ररूप में शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा–
ईश्वर की शपथ लेता हूं कि
“मैं, अमुक —————————— श्रद्धापूर्वक भारत के राष्ट्रपति के पद का कार्यपालन सत्यनिष्ठा से करूंगा (अथवा राष्ट्रपति के कॄत्यों का निर्वहन) करूंगा तथा अपनी पूरी योग्यता से संविधान और विधि का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करूंगा और मैं भारत की जनता की सेवा और कल्याण में निरत रहूंगा ।”
राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया
️अनुच्छेद 61 –(क) राष्ट्रपति पर महाभियोग का आरंभ संसद के किसी भी एक सदन में किया जा सकता है परंतु इसके लिए इन आरोपों पर सदन के एक चौथाई सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए और इसकी पूर्व सूचना राष्ट्रपति को 14 दिन पूर्व दिया जाना चाहिए।
(ख) महाभियोग का प्रस्ताव संसद के जिस सदन में पेश किया गया है, उस सदन के दो तिहाई सदस्यों के बहुमत द्वारा पारित होने के पश्चात ही यह संसद के दूसरे सदन में जाएगा जिसे राष्ट्रपति पर लगाए गए इन आरोपों की जांच करनी होगी।
(ग) इन सभी प्रक्रियाओं के दौरान राष्ट्रपति को संसद में उपस्थित होने और अपना प्रतिनिधित्व कराने का अधिकार होगा।
(4) यदि जांच के परिणामस्वरूप राष्ट्रपति पर लगाया गया आरोप सही पाया जाता है और महाभियोग का यह प्रस्ताव उस सदन में भी दो तिहाई बहुमत से पारित हो जाता है तो राष्ट्रपति को प्रस्ताव पारित होने की तिथि से ही अपने पद से हटना होगा।
राष्ट्रपति के पद में रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन करने का समय और आकास्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति की पदावधि
अनुच्छेद 62 –(1) राष्ट्रपति की पदावधि की समाप्ति से हुई रिक्ति को भरने के लिए नए राष्ट्रपति का निर्वाचन, पदावधि की समाप्ति से पहले ही पूर्ण कर लिया जाएगा।
(2) राष्ट्रपति की मृत्यु, पद त्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से जैसे यदि वह पद धारण करने के लिए आवश्यक योग्यता का पालन ना कर रहा हो या उसका निर्वाचन अवैध घोषित हो गया हो, तो नए राष्ट्रपति का चुनाव पद रिक्त होने की तिथि से 6 माह के भीतर कराना होगा। इस प्रकार निर्वाचित नया राष्ट्रपति पद ग्रहण करने की तिथि से 5 वर्ष तक अपने पद पर बना रहेगा और इस दौरान जब तक नए राष्ट्रपति का चुनाव नहीं होता है, तब तक उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा।
(3) इसके अतिरिक्त यदि वर्तमान राष्ट्रपति अनुपस्थित हो, बीमार हो या किसी अन्य कारण से अपने पद पर कार्य करने में असमर्थ हो तो उपराष्ट्रपति उसके पुनः पद ग्रहण करने तक कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा और यदि उपराष्ट्रपति का पद रिक्त हो तो भारत का मुख्य न्यायाधीश इस जिम्मेदारी को निभाएगा और यदि मुख्य न्यायाधीश का पद भी रिक्त हो तो इस स्थिति में उच्चतम न्यायालय का वरिष्ठ न्यायाधीश कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा।
(4) इस स्थिति में जब कोई अन्य व्यक्ति जैसे कि उपराष्ट्रपति, भारत का मुख्य न्यायाधीश अथवा उच्चतम न्यायालय का वरिष्ठ न्यायाधीश कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहा होगा तो उसे उस दौरान राष्ट्रपति की समस्त शक्तियां प्राप्त होंगी तथा वह संसद द्वारा निर्धारित सभी प्रकार की उपलब्धियों, वेतन, भत्ते एवं विशेषाधिकार को प्राप्त करेगा।
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