हिंदुत्व क्या है | राहुल गांधी बार बार हिंदूवादी और हिंदूत्ववादी शब्द का प्रयोग क्यों कर रहे हैं | क्या राहुल गांधी हिंदुत्व को बदनाम करने का प्रयास कर रहे हैं

पिछले कुछ समय से एक शब्द काफी प्रयोग में लाया जा रहा है- हिंदुत्व। हिंदुत्व और हिंदू शब्द में कुछ प्रत्यय लगाकर अनेक शब्द बनाए जा रहे हैं- हिंदूवाद, हिंदुत्ववाद, हिंदूवादी, हिंदुत्ववादी और न जाने क्या-क्या? हिंदुत्व को आतंक से जोड़ा जा रहा है, हिंदुत्व की तुलना आईएसआईएस और बोकोहरम जैसे आतंकवादी संगठनों से की जा रही है और तुलना भी वे लोग कर रहे हैं, जिनके पूर्वजों ने या ऐसे कहें जिन्हे इन्होंने अपना पूर्वज माना है या जिन लोगों ने जबरन इनके पूर्वजों पर अपनी संस्कृति थोपी थी, उन्होंने शताब्दियों से भारत की मूल संस्कृति को, उसकी मूल सांस्कृतिक पहचान को नष्ट करने का प्रयास किया है। बस आज अंतर यह हुआ है कि उनको उन लोगों का भी साथ मिल गया है जो पिछले 2 शताब्दियों से भारतवर्ष को खंड खंड करते चले आ रहे हैं। जिन्होंने भारत की बहु सांस्कृतिक पहचान को नष्ट कर उसे अपने पश्चिमी एकल सांस्कृतिक शब्द "वाद" से जोड़कर उसकी एकता, अखंडता और सौम्यता को नष्ट करने का प्रयास किया है। वे गोरे अंग्रेज तो चले गए पर भारत में अपनी काली नस्लों को छोड़ दिया। 
राजनीति में रुचि रखने वालों को अर्थशास्त्र की रचना करने वाले आचार्य चाणक्य की कुछ बातें स्मरण रखनी चाहिए। आज भारत की जो दुर्दशा हो रही है, भारत में जिस प्रकार से सौम्यता, सहिष्णुता और सौहार्दता नष्ट हो रही है, आपसी वैमनस्य, वैर भाव जिस प्रकार से लोगों के मन में घर कर रहा है, उन सब के पीछे मूल कारण है हमारा अपने राजनीतिक आदर्शों से दूर हटना। हमने अपनी सांस्कृतिक विविधता को ध्यान में ना रखते हुए पश्चिम के राजनीतिक सिद्धांतों का पूर्णत: अनुसरण करने की जो भारी भूल की है, उसी का दुष्परिणाम पिछले कुछ दशकों से हम सभी को झेलने पड़ रहे हैं।
आचार्य चाणक्य ने जब चंद्रगुप्त का विवाह सेल्यूकस निकेटर की पुत्री हेलेना से करने की मंजूरी दी थी तो शर्त यह रखी थी कि हेलेना या हेलेना से होने वाली संतान भारत के राजनैतिक कार्यों में, प्रशासन में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेगी और मगध साम्राज्य का अगला उत्तराधिकारी हेलेना से होने वाली संतान नहीं होगी परंतु आज का भारत अपने उन राजनीतिक आदर्शों को भूलता जा रहा है। चाणक्य ने इसके पीछे कारण बताए थे कि विदेशी मूल की माता की गर्भ से पैदा होने वाली संतान कभी भी भारत की परंपरा को, भारत की मूल भावना को नहीं समझ सकती, आत्मसात नहीं कर सकती। उन्होंने कहा था कि विदेशी मूल की महिला कभी भी भारत के प्रति वफादार नहीं हो सकती और आज क्या हो रहा है? हमने एक विदेशी मूल की महिला को भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी, जिसका गठन भी विदेशी मूल के व्यक्तियों ने किया था, उसकी बागडोर दे दी है, वो भी उसे जिसे भारतीय राजनीति का एक परसेंट भी ज्ञान नहीं था और अब उसी सबसे पुरानी पार्टी की बागडोर संभालने को उसी विदेशी महिला से उत्पन्न हुई संताने तैयार हो रही हैं। इससे बड़ा दुर्भाग्य भारत का क्या हो सकता है कि भारत अपने विगत 2500 वर्षों के सबसे बड़े राजनीतिक आदर्श चाणक्य के सिद्धांतों से पीछे हट कर पश्चिमी राजनीतिक आदर्शों का अनुसरण करने लगे?


खैर आज चर्चा का विषय राजनीति नहीं है, आज की चर्चा का मूल उद्देश्य हिंदुत्व और उसकी मूल भावना के विरुद्ध सभी विरोधियों द्वारा चलाया जा रहा दुष्प्रचार है। जैसा कि सभी लोग जानते हैं कि भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के युवराज राहुल गांधी जिनके पंथ को कई नाम दिया जा सकता है। दादा फिरोज खान की वंश परंपरा के अनुसार भी और माता सोनिया गांधी उर्फ एंटोनियो माइनो की वंश परंपरा के अनुसार भी। वो भी आज खुद को हिंदू और वो भी कश्मीरी पंडित बताते फिर रहे हैं, जिन्हें खुद के मूल गोत्र का अता पता नहीं वो भी आजकल असली और नकली हिंदू का निर्धारण कर रहे हैं, जैसे उन्होंने अब राजनीति छोड़कर धर्मगुरु बनने की ठान ली है।
पिछले वर्ष राजस्थान में महंगाई जैसे मुद्दे से संबंधित रैली का आयोजन किया गया था परंतु इस रैली में महंगाई शब्द का जिक्र शायद एक बार ही आया और पूरी रैली हिंदू और हिंदुत्व से ही प्रभावित रही। मतलब मुद्दा कोई भी हो पर विचार और वक्तव्य हिंदू और हिंदुत्व से ही जुड़े रहेंगे। खैर यह तो उनकी मर्जी कि वह किस मुद्दे पर कैसा विचार दें, शायद उनके लिए महंगाई का कारण हिंदुत्व रहा हो। आजकल हर जगह श्रीमान राहुल गांधी हिंदूवादी, हिंदुत्ववादी जैसे शब्दों का जिक्र कर रहे हैं और करेंगे भी क्यों नहीं? आखिर इनकी मूल नस्ल, इनका मूल रक्त पश्चिमी सभ्यता से ही जुड़ा हुआ है। इसलिए इनके तो खून में है हर शब्द को, हर विचार की भावना को पश्चिमी एकल सांस्कृतिक शब्द "वाद" से जोड़कर देखना। जिस प्रकार से इनके पश्चिम में वाद शब्द का जैसा अर्थ प्रचलित है, वैसा ही ये लोग भारत में भी देखना चाहते हैं और उसी नजरिए से देखते हैं। पश्चिम में नाजीवाद, मार्क्सवाद, लेनिनवाद आदि अनेक "वाद" प्रचलित हैं जो एकल संस्कृति पर आधारित हैं और जो अन्य संस्कृतियों को या अपनी संस्कृति में थोड़े से भी परिवर्तन को बर्दाश्त नहीं कर सकते जबकि यदि भारत की मूल संस्कृति हिंदुत्व का अध्ययन किया जाए तो यह अपने हजारों वर्षों के इतिहास में हमेशा समय के साथ प्रवर्तनीय रही है, परिस्थितियों के अनुरूप ढलती रही है। विश्व की सबसे सहिष्णु विचारधारा की यदि खोज की जाएगी तो हिंदुत्व से अधिक सहिष्णु और हिंदुत्व से अधिक सौम्य विचारधारा पूरे विश्व में कहीं नहीं मिलेगी परंतु जब कोई पूर्वाग्रह से प्रभावित होकर के हिंदुत्व, जिसमें संपूर्ण विश्व के सभी धर्मों का सार समाहित है, जिसमें संपूर्ण मानवता के कल्याण का सार, कल्याण की भावना समाहित है, उस हिंदुत्व को एकल सांस्कृतिक शब्द "वाद" से जोड़ देता है तो यह ना केवल मूर्खता है बल्कि एक षड्यंत्र का हिस्सा भी है।

हमारे किसी भी सांस्कृतिक ग्रंथ में, किसी भी धार्मिक ग्रंथ में ऐसा नहीं लिखा कि हम किसी अन्य विचारधारा के व्यक्ति के साथ सौतेला व्यवहार करें, किसी अन्य संस्कृति, किसी अन्य संप्रदाय के व्यक्ति के साथ भेदभाव करें। उन्हें मारना या उन्हें क्षति पहुंचाना तो बहुत दूर की बात है, उनके साथ किसी प्रकार के मानसिक भेदभाव का भी समर्थन हमारे किसी सांस्कृतिक ग्रंथ में नहीं मिलेगा। उसके बावजूद हिंदुत्व को और हिंदू धर्म को इस प्रकार से असहिष्णु साबित करने की कोशिश करना और उसके साथ "वाद" शब्द जोड़कर उसे एकल सांस्कृतिक और कट्टर साबित करने की कोशिश करना नि:संदेह पूर्णत: दुर्भावना से प्रेरित है। पश्चिमी मान्यताओं और आदर्शों के अनुसार यदि हिंदू और हिंदुत्व में "वाद" शब्द जोड़ते हैं तो हिंदुत्ववाद और हिंदूवाद शब्द का अर्थ यह होगा कि इस विचारधारा के लोग किसी अन्य विचारधारा के व्यक्ति को सहन नहीं कर सकते, उनके साथ सौम्यता और सौहार्दता पूर्वक व्यवहार नहीं कर सकते, उनके साथ एक साथ मिलकर नही रह सकते। 
हम कहते हैं कि इन शब्दों का प्रयोग करने वाले लोग भारत के पूरे इतिहास में कहीं कोई ऐसा एक उदाहरण दिखा दें जहां पर हिंदुओं ने अन्य संप्रदाय के, अन्य विचारधारा के या अन्य संस्कृति का पालन करने वाले लोगों के साथ भेदभाव किया हो या उन्हें प्रताड़ित किया हो।
पूरा इतिहास साक्षी है कि जहां कहीं भी हिंदू अल्पसंख्यक रहा है वहां हिंदुओं की प्रताड़ना हुई है,चाहे हो केरल का मोपला नरसंहार हो या कश्मीरी पंडितों का नरसंहार। चाहे वो तुर्की में खलीफा के लिए भारत में चल रहे खिलाफत आन्दोलन के कारण मालाबार में हिंदू महिलाओं के साथ हुई सामूहिक ज्यादती और छोटे छोटे बच्चों को उछाल उछालकर भाले की नोक से मारना हो या कश्मीरी महिलाओं के साथ जानवरों की तरह किया गया सामूहिक बलात्कार। परंतु जहां हिंदू बहुसंख्यक रहा है, वहां अन्य विचारधाराओं या अन्य संस्कृतियों के लोगों को कभी प्रताड़ित नहीं किया गया और कोई इस तरह का एक भी प्रमाण नहीं दे सकता। फिर भी पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद, नाम सभी जानते होंगे, दिग्विजय सिंह इनके जैसे लोग हिंदुत्व की तुलना आईएसआईएस और बोकोहरम जैसे आतंकवादी संगठनों से करते हैं।

पूरा विश्व जानता है कि आईएसआईएस और बोकोहरम जैसे आतंकवादी संगठन किस मजहब या किस संप्रदाय से जुड़े हुए हैं और किस संप्रदाय, किस मजहब के नाम पर ये लोग आतंक करते हैं, आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देते हैं, जबकि वास्तव में इस्लाम में ऐसा कुछ भी वर्णित नहीं है। ये आतंकवादी संगठन और कुछ कुछ कट्टरपंथी कबाइली संगठन कुरान की आयतों का गलत अर्थ निकाल कर उसका दुष्प्रचार और दुरुपयोग करते हैं। उसके बावजूद कुछ लोग इन संगठनों की और इनकी विचारधाराओं की तुलना हिंदुत्व से करते हैं, वो भी उस हिंदुत्व से जिसकी मूल भावनाओं में ही विश्व कल्याण की भावना छिपी हुई है, जिसके साहित्यिक, पौराणिक एवं सांस्कृतिक ग्रंथों में "वसुधैव कुटुंबकम" का सार छुपा हुआ है, जिसमें नारी को देवी के समान पूजनीय माना जाता है, जिसमें प्रकृति को देवत्व की भावना से देखा जाता है, जिसमें हर एक जीव, हर एक प्राकृतिक घटक को पूजने, उसके योगदान के प्रति कृतज्ञता अर्पित करने की भावना छिपी हुई है, हर किसी के सम्मान, हर किसी के कल्याण और हर किसी के उत्थान की बात छिपी हुई है, उस हिंदुत्व की तुलना ऐसे आतंकवादी संगठनों से किया जा रहा है, जिसकी भावना ही ऐसी हो जो नारियों को कैद में रखें, जो गैर इस्लामिक विचारधारा के लोगों को काफ़िर शब्द से संबोधित करें और खुलेआम उन्हें मारने की धमकी दे, जो हर देश को शरीयत के अनुसार चलाने की कोशिश करे, जो पूरे विश्व में आतंक का साम्राज्य स्थापित करने की कोशिश करे, जो स्त्री-पुरुषों की आजादी छीनने की कोशिश करे, उनको शिक्षा से दूर करने की कोशिश करे और यहां तक कि अपने मुसलमान भाइयों को भी शरीयत के अनुसार न चलने पर जिंदा न छोड़े। ऐसे आतंकवादी संगठनों से हिंदुत्व की तुलना करना आकाश को पाताल और पर्वत को खाई कहने के बराबर है।


इन सब का मूल कारण इन तथाकथित धर्मगुरुओं चाहे वे किसी भी संप्रदाय के हों, हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, नाथ, शैव, वैष्णव, मुस्लिम, ईसाई, उन सभी का धर्म के प्रति अज्ञान ही है। इन सभी का व्यवहार वास्तव में धर्म के गिरे हुए स्तर को ही दर्शाता है। विशेष रुप से धर्म की मर्यादा और धर्म का स्तर तब और अधिक गिर जाता है और अधिक खंडित होता है जब इसकी व्याख्या कोई योग्य धर्मगुरु ना करके अज्ञानी राजनेता करने लगता है। कोई ऐसा व्यक्ति करने लगता है जिसे धर्म के मर्म का 1% भी ज्ञान ना हो। जैसा कि वर्तमान समय में तमाम नेता लोग कर रहे हैं जो खुद को किसी धर्म का असली अनुयाई साबित करने की होड़ में लगे हुए हैं। कुछ समय पहले तक जो लोग मंदिर जाने वालों को लफंगे कहा करते थे, ढोंगी और पाखंडी कहा करते थे, आज केवल और केवल चुनाव के लिए सत्ता के लोभ के लिए मंदिर मंदिर भटक रहे हैं। यह राजनेताओं के और धर्म के मूल स्वरूप के गिरे हुए स्तर को नहीं तो और क्या दिखाता है?

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