नमस्कार दोस्तों, आनंद सर्किल में आपका हार्दिक स्वागत है। आज पूरे भारतवर्ष में मकर संक्रांति का पर्व पूरे धूम धाम से मनाया जा रहा है।
हम सभी जानते हैं कि हमारे देश को त्योहारों की भूमि कहा जाता है। हमारे देश में सभी त्योहारों का अपना एक विशेष महत्त्व है और देश के विभिन्न क्षेत्रों में इन्हें मनाने का तरीका भी अलग-अलग है। आंग्ल नववर्ष के प्रथम माह जनवरी में हर वर्ष 14 जनवरी को मकर संक्रांति का महापर्व मनाया जाता है।
पंजाब, जम्मू कश्मीर और देश के कुछ क्षेत्रों में इसे लोहड़ी के नाम से एक दिन पहले ही मनाते हैं। असम में इसे बिहू और तमिलनाडु के आस पास के क्षेत्रों में इसे पोंगल के नाम से मनाया जाता है। इस तरह किसी न किसी रूप में लोग अपनी-अपनी मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति को विभिन्न नामों और विभिन्न रीति रिवाजों से मनाते हैं।
पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में इसे पौष संक्रांति तथा श्रीलंका में पोंगल के नाम से मनाया जाता है। उत्तराखंड में इसे उत्तरायण के नाम से मनाते हैं।
उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ क्षेत्रों में इसे खिचड़ी भी कहते हैं और इस दिन लोग घरों में खिचड़ी बनाते हैं, कई जगहों पर खिचड़ी का प्रसाद के रूप में वितरण भी किया जाता है। वहीं इस खास दिन पर तिल, गुड़ के पकवानों का आनंद लिया जाता है, साथ ही स्नान का भी विशेष महत्व होता है।
पंजाब और जम्मू-कश्मीर के लोग इसे लोहड़ी के नाम से बड़े पैमाने पर मनाते हैं। लोहड़ी का त्योहार मकर संक्रांति के एक दिन पहले मनाया जाता है। जब सूरज ढल जाता है, तब घरों के बाहर बड़े-बड़े अलाव (आग) जलाए जाते हैं और स्त्री-पुरुष,घर के बच्चे सज-धजकर नए-नए कपड़े पहनकर जलते हुए अलाव के चारों ओर भांगड़ा डांस करते हैं और अग्नि को मेवा, तिल, गजक, चिवड़ा आदि की आहुति भी देते हैं। सभी एक-दूसरे को लोहड़ी की शुभकामनाएं देते हुए आपस में भेंट बांटते हैं और प्रसाद बांटते हैं। प्रसाद में ज्यादातर तिल, गुड़, मूंगफली आदि होती है।
इसी दिन से उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले में हर वर्ष एक माह चलने वाले महापर्व माघमेला का प्रथम स्नान प्रारंभ होता है। माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि के आख़िरी स्नान तक चलता है। संक्रान्ति के दिन स्नान के बाद दान देने की भी परम्परा है। भारत के विभिन्न भागों मे यह पर्व मुख्य रूप से दान के लिए प्रसिद्ध है। इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। जैसा कि निम्न श्लोक से स्पष्ट होता है -
माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।
स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥
मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है।
आइए जानते हैं कि मकर संक्रांति क्यों मनाया जाता है?
वास्तव में यह पर्व खगोलीय घटनाओं से जुड़ा हुआ है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से निकल अपने पुत्र शनि की राशि मकर में प्रवेश करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं, जिसे गंगासागर कहा जाता है।
ज्योतिष और खगोल शास्त्र में 12 राशियों की गणना की जाती है जिनमे से सूर्य प्रत्येक राशि में एक मास का समय व्यतीत करते हैं और जब सूर्य किसी राशि से निकल कर दूसरी राशि में प्रवेश करता है तो इसे उस राशि की संक्रांति कहा जाता है। इस प्रकार 1 सौर वर्ष में कुल 12 संक्रांतियां पड़ती हैं किंतु इनमें से चार का विशेष महत्व है- मकर संक्रांति, कर्क संक्रांति, मेष संक्रांति और तुला संक्रांति।
उत्तरायण का महत्त्व
उत्तराखंड और गुजरात आदि कुछ जगहों पर मकर संक्रांति को उत्तरायण के नाम से मनाया जाता है, क्योंकि इसी दिन से सूर्य उत्तरायण होने लगते हैं अर्थात सूर्य का गमन पथ अपने मध्य पथ से धीरे धीरे उत्तर दिशा की ओर जाने लगता है। इसी प्रकार कर्क संक्रांति को दक्षिणायन कहते हैं क्योंकि इस दिन से सूर्य का पथ दक्षिण की ओर जाने लगता है। सूर्य के उत्तरायण का महत्व छांदोग्य उपनिषद में भी किया गया है।
वास्तव में ऐसा पृथ्वी की सूर्य के चारों ओर होने वाली परिक्रमा और अपनी धुरी पर झुकी होने की वजह से हर छह मास पर सूर्य का पथ उत्तर या दक्षिण दिशा में परिवर्तित होता दिखाई देता है। सूर्य अपने पथ पर उत्तर या दक्षिण की दिशा में नहीं जाता।
महाभारत में पितामाह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से शरीर का परित्याग किया था। ऐसी मान्यता थी कि उत्तरायण में देह छोड़ने वाली आत्माएं या तो कुछ काल के लिए देवलोक में चली जाती हैं या पुनर्जन्म के चक्र से उन आत्माओं को छुटकारा मिल जाता है। जबकि दक्षिणायण में देह छोड़ने पर आत्मा को बहुत काल तक अंधकार का सामना करना पड़ सकता है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि सूर्य की उत्तरायण स्थिति का बहुत ही अधिक महत्व है। सूर्य के उत्तरायण होने पर दिन बड़ा होने से मनुष्य की कार्यक्षमता में भी वृद्धि होती है जिससे मानव प्रगति की ओर अग्रसर होता है। प्रकाश में वृद्धि के कारण मनुष्य की शक्ति में भी वृद्धि होती है
अनेक स्थानों पर इस त्योहार पर पतंग उड़ाने की परंपरा प्रचलित है। लोग दिन भर अपनी छतों पर पतंग उड़ाकर हर्षोउल्लास के साथ इस उत्सव का मजा लेते हैं। विशेष रूप से पतंग उड़ाने की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं।
पतंग उड़ाने के पीछे धार्मिक मान्यता यह है कि श्रीराम ने भी इस दिन पतंग उड़ाई थी। गुजरात व सौराष्ट्र में मकर संक्रांति पर कई दिनों का अवकाश रहता है और यहां इस दिन को भारत के किसी भी अन्य राज्य की तुलना में अधिक हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
पौष मास की सर्दी के कारण हमारा शरीर कई तरह की बीमारियों से ग्रसित हो जाता है, जिसका हमें पता ही नहीं चलता और इस मौसम में त्वचा भी रुखी हो जाती है। इसलिए जब सूर्य उत्तरायण होता है, तब इसकी किरणें हमारे शरीर के लिए औषधि का काम करती हैं और पतंग उड़ाते समय हमारा शरीर सीधे सूर्य की किरणों के संपर्क में आता है, जिससे अनेक शारीरिक रोग जो हम जानते ही नहीं हैं वे स्वत: ही नष्ट हो जाते हैं।
मकर संक्रांति का विभिन्न दृष्टिकोण से महत्त्व
इसके पीछे एक धार्मिक मान्यता यह भी है कि मकर संक्रांति के दिन देव भी धरती पर अवतरित होते हैं और गंगा में स्नान करते हैं। इस दिन मृत्यु होने पर आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है। अंधकार का नाश व प्रकाश का आगमन होता है। लेकिन मकर संक्रांति का जितना धार्मिक महत्व होता है, उतना ही अधिक वैज्ञानिक महत्व भी होता है। ऐसा माना जाता है कि मकर संक्रांति से ठंड कम होने की शुरुआत हो जाती है।
धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व के अलावा मकर संक्रांति का आयुर्वेदिक महत्व भी है। इस दिन चावल, तिल और गुड़ से बनी चीजें खाई जाती हैं। तिल और गुड़ से बनी चीजों का सेवन स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है। इन चीजों के सेवन से इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है। मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने की परंपरा होती है, इसलिए मकर संक्रांति के पावन पर्व को खिचड़ी भी कहते हैं। हालांकि इस दिन खिचड़ी खाने की एक वजह ये भी होती है कि मकर संक्रांति से पहले कुछ फसलों की कटाई होती है। चावल और दाल से बनी खिचड़ी का सेवन सेहत के लिए फायदेमंद होता है। ये पाचन तंत्र को मजबूत करती है। इसमें अदरक और मटर मिलाकर बनाने पर यह शरीर को रोग-प्रतिरोधक बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करती है।
मकर संक्रांति के बाद से वातावरण में बदलाव आने लगता है। नदियों में वाष्पन की प्रक्रिया शुरू होने लगती है। इससे कई सारी बीमारियां दूर हो जाती हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक, सूर्य के उत्तरायण होने से सूर्य का ताप सर्दी को कम करता है।
1 टिप्पणियाँ
Nice👍
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