पेरिस जलवायु समझौता कब लागू हुआ? पेरिस जलवायु समझौते के प्रावधान क्या थे?


नमस्कार दोस्तों आनंद सर्किल में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। आज इस आलेख में पेरिस जलवायु समझौते पर चर्चा की जाएगी। यह समझौता दिसंबर 2015 में पेरिस में आयोजित हुए UNFCC या UNFCCC (United Nations Framework convention on Climate Change) के 21वें वार्षिक सम्मेलन COP-21 (Conference of parties) में हुआ था। 

बीते कुछ दशकों में ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर में सामने आ रही प्राकृतिक आपदाओं और खतरों को देखते हुए पर्यावरण को बचाने की मुहिम और अनेक सम्मेलन समय-समय पर लगातार होते रहे हैं, परंतु इतने सम्मेलनों और योजनाओं के बाद भी अभी तक पर्यावरण को बचाने का कोई ठोस उपाय नहीं किया जा सका है। 
जलवायु परिवर्तन से निपटने और पर्यावरण को बचाने के लिए वैश्विक स्तर पर प्रथम शिखर सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र की पहल पर ब्राजील की राजधानी रियो डे जेनेरियो में 1992 में आयोजित किया गया था जिसे प्रथम पृथ्वी शिखर सम्मेलन या अर्थ समिट भी कहा जाता है। इस सम्मेलन की खास बात यह रही कि इसमें तय किया गया जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए उपायों और उठाए गए कदमों पर चर्चा करने के लिए सभी सदस्य देश हर वर्ष एक सम्मेलन COP (Conference of parties) में हिस्सा लेंगे। साथ ही इसी शिखर सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र संरचना सम्मेलन (UNFCC या UNFCCC) का गठन भी हुआ था, जो 1994 ई० को प्रभावी हुआ था। इसी के आधार पर 1995 में बर्लिन में COP-1 का आयोजन हुआ था। 
Global warming को सीमित करने और ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन (ग्रीन हाउस प्रभाव) कम करने के लिए प्रथम ऐतिहासिक समझौता जापान के क्योटो शहर में आयोजित हुए COP-3 सम्मेलन में हुआ था, क्योटो प्रोटोकॉल कहा जाता है। यह क्योटो प्रोटोकोल अपने उद्देश्यों और प्रतिबद्धताओं को पूर्ण करने में पूर्णत: सफल नहीं हो सका और इसकी प्रतिबद्धताएं वर्ष 2020 में समाप्त हो गईं। 

पेरिस जलवायु समझौता फ्रांस की राजधानी पेरिस में 30 Nov 2015 से 12 Dec 2015 तक हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में हुआ था। यह सम्मेलन  UNFCCC के तहत होने वाला COP का 21वां सत्र था। यह सम्मेलन 11 दिसंबर तक ही चलना था किंतु पेरिस जलवायु समझौते को अंतिम रूप देने के लिए इसे 1 दिन बढ़ाया गया था। इस समझौते में संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) के 193 देश और नीयू तथा कुक आइलैंड शामिल हैं। यह समझौता कम से कम 55% वैश्विक ग्रीन हाउस उत्सर्जन करने वाले लगभग 55 देशों के हस्ताक्षर के बाद 4 नवंबर 2016 से प्रभावी हो गया था किंतु इसकी प्रतिबद्धताएं 2021 में स्कॉटलैंड के ग्लासगो में आयोजित हुए COP-26 सम्मेलन से प्रारंभ हुईं। इसी सम्मेलन में Aug 2021 में प्रकाशित हुई IPCC (Intergovernmental Panel on Climate Change) की 6वीं रिपोर्ट पर भी चर्चा की गई थी।

पेरिस जलवायु समझौते की प्रतिबद्धताएं
इस सम्मेलन की प्रमुख प्रतिबद्धता यह थी कि वैश्विक तापमान वृद्धि को औद्योगिक क्रांति से पहले के स्तर से अधिकतम 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिए सभी देशों को मिलकर प्रयास करना होगा। यदि संभव हुआ तो इस वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोकने का प्रयास करना होगा क्योंकि 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने पर भी समुद्र तटों पर बसे हुए कुछ देश और दुनिया के अनेक बड़े शहर समुद्र में डूब सकते हैं। 
इस समझौते में सभी देशों को यह प्रतिबद्धता दी गई है कि वे सभी राष्ट्रीय स्तर पर इस शताब्दी के दूसरे उत्तरार्द्ध तक कार्बन उत्सर्जन को नेट जीरो करने का लक्ष्य निर्धारित करें और कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए भविष्य में किए जाने वाले कार्यों और बनाए जाने वाली योजनाओं को इस मंच पर सभी सदस्य देशों के साथ साझा करें। चूंकि वर्तमान में हो रही ग्लोबल वार्मिंग के लिए विकसित देश ही जिम्मेदार हैं। इस वजह से विकासशील देशों के विकास को प्रभावित होने से बचाने के लिए इस समझौते में यह प्रावधान किया गया है कि कार्बन उत्सर्जन में कमी करने के लिए विकसित देश विकासशील देशों को फंड उपलब्ध कराएंगे। इसके लिए वर्ष 2020 से प्रति वर्ष 100 अरब डालर की मदद विकासशील देशों को दी जाएगी। 

इस समझौते में यह सुनिश्चित किया गया है कि विकसित देशों को विकासशील देशों की तुलना में कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने के लिए अधिक प्रयास करने होंगे। नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों अर्थात स्वच्छ ईंधन की दिशा में आगे बढ़ने के लिए सभी देशों को स्वच्छ ऊर्जा पर अधिक से अधिक निवेश करना होगा। विकसित देशों को गरीब देशों के विकास को प्रभावित होने से बचाना होगा, गरीब देशों में स्वच्छ ऊर्जा के विकास के लिए उन्हें कार्य करना होगा। 

भारत ने इस समझौते पर 2 अक्टूबर 2016 को हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाला भारत 62वां देश था। चीन, जिसकी ग्रीनहाउस उत्सर्जन में सर्वाधिक 30% हिस्सेदारी है, उसने इस समझौते की औपचारिक पुष्टि 3 सितंबर 2016 को की थी। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 15% हिस्सेदारी के साथ दूसरे स्थान पर मौजूद अमेरिका ने भी इस समझौते पर हस्ताक्षर 3 सितंबर 2016 को किए थे। हालांकि 4 Nov 2019 को अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को इस समझौते से अलग करने की घोषणा कर दी थी और आधिकारिक रूप से अमेरिका 4 Nov 2020 को पेरिस जलवायु समझौते से अलग हो गया था परंतु अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अमेरिका को Feb 2021 में पुनः इस समझौते में शामिल कर लिया है।

पेरिस जलवायु समझौते से अलग होने की प्रक्रिया

  • पेरिस समझौते का अनुच्छेद-28, किसी भी हस्ताक्षरकर्त्ता देश के इससे अलग होने के प्रावधानों का वर्णन करता है।
  • इसके अनुसार, कोई भी हस्ताक्षरकर्त्ता देश पेरिस समझौते के गठन के तीन वर्ष बाद (4 नवंबर 2016) ही इससे अलग होने के लिये सूचना दे सकता है। इसके अलावा सूचित करने के एक वर्ष बाद ही उक्त देश को इस समझौते से अलग माना जाएगा। इस प्रकार अमेरिका इस समझौते से वर्ष 2020 में औपचारिक रूप से अलग हुआ था।

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