जलवायु परिवर्तन के कारण

जलवायु परिवर्तन के कारण


नमस्कार दोस्तों, आनंद सर्किल में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस आलेख में हम जलवायु परिवर्तन की समस्या उत्पन्न होने के कारणों पर चर्चा करेंगे। जलवायु परिवर्तन क्या है एवं इससे क्या क्या प्रभाव उत्पन्न हो सकते हैं, इसका अध्ययन पहले ही एक आर्टिकल में किया जा चुका है, जिसे आप इस लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं- "जलवायु परिवर्तन क्या है?"

आज हमारे सामने जलवायु परिवर्तन के कारण जितनी भी आपदाएं आ रही हैं, जितनी भी समस्याओं का हमें सामना करना पड़ रहा है और आने वाली पीढ़ियों को सामना करना पड़ेगा, इन सभी प्राकृतिक आपदाओं के लिए जिम्मेदार हम लोग ही हैं, हमारे भौतिक सुख की लालसा ही इसके लिए पूर्णत: जिम्मेदार है। जिस प्रकार से हम लोग आर्थिक उन्नति और भौतिक उन्नति की होड़ में अंधे होकर अंधाधुंध प्रकृति का शोषण करते जा रहे हैं, अगर हमने इसे रोकने, नियंत्रित करने अथवा सीमित करने के लिए कदम नहीं उठाए तो आने वाली पीढ़ियों को और अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा और अधिक आपदाएं झेलनी पड़ेगी। 

जलवायु परिवर्तन के कारण

हम यह जानते हैं कि किसी स्थान किसी देश की जलवायु परिवर्तन होने में 30 से 35 वर्ष औसतन लगते हैं। किसी स्थान की जलवायु परिवर्तित होने के पीछे दो प्रकार के कारक जिम्मेदार होते हैं- एक प्राकृतिक कारक और दूसरा मानव जनित कारक।
प्राकृतिक कारकों में महाद्वीपीय विस्थापन, ज्वालामुखी विस्फोट, पृथ्वी का झुकाव, समुद्री धाराएं इत्यादि आती हैं।
जबकि मानव जनित कारकों में शहरीकरण, औद्योगीकरण, वनोन्मूलन, रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग आदि आता है।
 आज हमें जिस जलवायु परिवर्तन की समस्या का सामना करना पड़ रहा है, यह पूरी तरह से मानव जनित है, क्योंकि प्राकृतिक कारकों से जलवायु परिवर्तन होने में लाखों-करोड़ों वर्ष लगते हैं और यह जलवायु परिवर्तन आज से 30 से 40 वर्ष पहले की जा रही गतिविधियों का परिणाम है और आने वाले 30-40 वर्षों में वर्तमान में की जा रही गतिविधियों के परिणाम सामने आएंगे।
जलवायु परिवर्तन जैसी समस्या उत्पन्न होने के लिए मूलत: पृथ्वी की सतह के तापमान में होने वाला परिवर्तन है। औद्योगिक क्रांति से पहले पृथ्वी की सतह का जो औसत तापमान था, वर्तमान समय तक उस में 1⁰C की वृद्धि हो चुकी है। वैश्विक तापमान में होने वाली इस वृद्धि को ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं और ग्लोबल वार्मिंग के पीछे जिम्मेदार है ग्रीन हाउस प्रभाव। 
वर्तमान जलवायु परिवर्तन के लिए ग्लोबल वार्मिंग जिम्मेदार है, ग्लोबल वार्मिंग के लिए ग्रीन हाउस गैसें जिम्मेदार हैं और ग्रीन हाउस गैसों के लिए मनुष्य और मनुष्य की गतिविधियां जिम्मेदार हैं तो अंततः वर्तमान में हो रहे इन सभी बदलावों के लिए मनुष्य ही जिम्मेदार है। 
ग्रीन हाउस प्रभाव के लिए पहले 6 प्रकार की गैसों को जिम्मेदार माना जाता था-
Carbon di oxide (CO2), 
Methane (CH4), 
Nitrous oxide (N2O), 
Hydro Fluorocarbons(HFCs),
Per Fluorocarbons(PFCs),
Sulphur hexafluoride (SF6).

2012 में दोहा(कतर) में हुए COP-18(Conference of parties) सम्मेलन में NF3 को भी ग्रीन हाउस गैसों में शामिल कर लिया गया था। इस प्रकार अब ग्रीन हाउस प्रभाव के लिए सामूहिक रूप से 7 गैसें जिम्मेदार हैं परंतु सर्वाधिक जिम्मेदार कार्बन डाइऑक्साइड है। संपूर्ण ग्लोबल वार्मिंग के लिए 60% CO2 ही जिम्मेदार है, जिसकी उत्पत्ति उद्योगों, परिवाहनों और जीवाश्म ईंधनों से होती है। इसके बाद मिथेन जिम्मेदार है जिसकी उत्पत्ति दलदली जमीन से, कोयले की खदानों का पानी से संपर्क होने पर और धान की खेती से होती है। खेतों में प्रयोग किए जाने वाले रासायनिक उर्वरकों और पेट्रोल के दहन से नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) की उत्पत्ति होती है।
यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि कार्बन डाइऑक्साइड और हाइड्रो फ्लोरो कार्बन ओजोन परत का क्षरण नहीं करती हैं परंतु ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार हैं।

 2015 में हुए पेरिस जलवायु समझौते में 21वीं सदी के लिए वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5⁰C तक सीमित करने का लक्ष्य रखा गया है। प्रारंभ में वैश्विक तापमान वृद्धि को 2⁰C सीमित रखने का लक्ष्य रखा गया था परंतु इतने में ही मॉरीशस जैसे देश समुद्र में डूब जाते, इसलिए इस लक्ष्य को संशोधित करके 1.5⁰C रखा गया है। सभी देशों ने वादा किया है कि वे सभी मिलकर कार्बन उत्सर्जन को इस हद तक सीमित करेंगे कि 21वीं शताब्दी के अंत तक पृथ्वी के औद्योगिक क्रांति से पहले के औसत तापमान स्तर में वृद्धि 1.5⁰C ही हो। परंतु वर्तमान की गतिविधियों को देखते हुए इस लक्ष्य का पूर्ण होना संभव नहीं लग रहा क्योंकि सभी देश जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं हो रहे, कार्बन उत्सर्जन नियंत्रित करने को तैयार नहीं हो रहे, अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरी करने के लिए नवीकरणीय स्रोतों के इस्तेमाल को बढ़ाने पर विशेष ध्यान नहीं दे रहे हैं। यदि ऐसा ही चलता रहा तो 1.5⁰C की वृद्धि 2050 तक ही हो जाएगी।

विकसित देशों के लिए जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए पर्याप्त संसाधन है परंतु विकासशील देश और जो गरीब देश हैं उनके पास इतना धन नहीं है कि वह अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरी करने के लिए नवीकरणीय स्रोतों पर अधिक निवेश कर सकें और विकासशील देश अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरी करने के लिए अधिकांशतः कोयले पर ही निर्भर हैं और कोयले की खपत में कटौती करके अपनी विकास की रफ्तार को रोकना नहीं चाहते। यही वजह है कि वैश्विक कार्बन उत्सर्जन कम नहीं हो रहा है, सीमित नहीं हो रहा है और जब तक यह सीमित नहीं होगा तब तक वैश्विक तापमान वृद्धि भी सीमित नहीं होगी। 
वर्तमान में वैश्विक कार्बन उत्सर्जन के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार क्षेत्र Electric production units हैं। ये क्षेत्र कुल वैश्विक कार्बन उत्सर्जन का 25.6% कार्बन उत्सर्जित करते हैं क्योंकि हर कार्य के लिए विद्युत की आवश्यकता होती है, हर क्षेत्र में विद्युत की आवश्यकता होती है और विज्ञान की इतनी अधिक उन्नति होने के बाद भी आज भी अधिकतर देश अपनी विद्युत आवश्यकताओं को पूरी करने के लिए पूर्णत: कोयले पर ही निर्भर हैं। कुछ विकसित एवं विकासशील देश नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, हाइड्रो पावर, परमाणु रिएक्टर आदि का प्रयोग कर रहे हैं परंतु ये सभी अभी बहुत ही सीमित स्तर पर हो रहा है। आधी विद्युत आवश्यकताओं को  पूर्ण करने के लिए भी यह पर्याप्त नहीं है। 

इसके अलावा औद्योगिक जरूरतों को पूर्ण करने के लिए भी ऊर्जा की जरूरत होती है, ईंधन की जरूरत होती है। आज भी बहुत से उद्योग अपनी ऊर्जा आवश्यकता पूर्ण करने के लिए कोयले, पेट्रोल-डीजल जैसे जीवाश्म ईंधन पर ही निर्भर हैं। वैश्विक तापमान में होने वाली इस वृद्धि के लिए जिम्मेदार तत्वों में विद्युत उत्पादक क्षेत्र (25.6%) प्रथम स्थान पर है, इसके बाद औद्योगिक क्षेत्र (15.7%) और फिर परिवहन क्षेत्र (13.2%) इसके लिए सबसे अधिक जिम्मेदार हैं। 

इसके अलावा और भी अनेक क्षेत्र हैं जो इसके लिए जिम्मेदार हैं, जैसे कृषि उत्पादन, व्यवसायिक होटल, वेस्ट प्रोडक्ट इंडस्ट्री, जीवाश्म ईंधन इत्यादि किंतु इनका प्रभाव बहुत सीमित है।

इस प्रकार इस आलेख में हमने देखा कि वर्तमान जलवायु परिवर्तन के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार ग्रीन हाउस गैसों में 60% अकेले कार्बन डाइऑक्साइड ही जिम्मेदार है और यदि जिम्मेदार क्षेत्रों की बात की जाए तो विद्युत उत्पादन क्षेत्र इसके लिए सर्वाधिक जिम्मेदार है। वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए अब नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर तेजी से निवेश करना होगा। सभी देशों को अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरी करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर ध्यान देना होगा, तभी हम अपने भविष्य, अपनी आने वाली पीढ़ियों के जीवन को और प्रकृति को, पृथ्वी को बचा पाएंगे अन्यथा इस पृथ्वी पर भी जीवन संकट में आ जाएगा।

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