नमस्कार दोस्तों आनंद सर्किल में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। आज हम चर्चा करेंगे शास्त्रीय भाषा किसे कहते हैं, किसी क्षेत्र या देश में किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा(Classical language) घोषित करने की क्या अवधारणाएं हैं, किस प्रकार से किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा घोषित किया जाता है और किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा घोषित करने से क्या फायदा होता है, उस भाषा के साहित्य में उस भाषा के विकास में क्या बदलाव आता है? इस आर्टिकल में हम इन सभी का अध्ययन करेंगे।
आइए जानते हैं शास्त्रीय भाषा किसे कहते हैं?
जैसा कि नाम में ही स्पष्ट है कि शास्त्रीय भाषा अर्थात शास्त्रों की भाषा। शास्त्रीय भाषा के रूप में प्रायः उन भाषाओं को घोषित किया जाता है जो लुप्त होने की कगार पर हों या लुप्तप्राय हो चुकी हों, जिन भाषाओं को आम बोलचाल की भाषा में या तो प्रयोग ही नहीं किया जाता हो या फिर उस रूप में प्रयोग ना करके परिवर्तित रूप में प्रयोग किया जाता हो। सभी देशों या क्षेत्रों की अपनी-अपनी शास्त्रीय भाषाएं होती हैं जो वहां की लुप्त हो चुकी सभ्यता अथवा संस्कृति को प्रदर्शित करती हैं, जैसे कि यूरोप की शास्त्रीय भाषा अर्थात क्लासिकल लैंग्वेज(Classical language) ग्रीक एवं लैटिन है, वेस्टर्न एशिया की क्लासिकल लैंग्वेज अरेबिक और हिब्रू है, चाइना की क्लासिकल लैंग्वेज चाइनीज है।
भारत में अगर बात की जाए तो दक्षिणी भारत की शास्त्रीय भाषा तमिल है जिसे 2004 में शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया था। यह भारत सरकार द्वारा घोषित की गई प्रथम शास्त्रीय भाषा थी। भारत में अब तक 6 भाषाओं को शास्त्रीय भाषा के रूप में भारत सरकार द्वारा सूचीबद्ध किया गया है-
तमिल 2004 में,
संस्कृत 2005 में,
कन्नड़ एवं तेलुगू 2008 में,
मलयालम 2013 में
एवं ओड़िया 2014 में शास्त्रीय भाषा के रूप में सूचीबद्ध हुई थी।
किसी भाषा के शास्त्रीय भाषा घोषित होने की अवधारणाएं
भारत के संस्कृति मंत्रालय के 2019 की नवीनतम परिभाषाओं के अनुसार "उन भाषाओं को शास्त्रीय भाषा की श्रेणी में रखा जाता है जिनसे जुड़े प्रारंभिक ग्रंथों का इतिहास 1500 से 2000 या इससे भी अधिक वर्ष पुराना हो और जिनका उद्भव किसी अन्य भाषा से ना हुआ हो। इसके अलावा उस भाषा से जुड़े साहित्यिक ग्रंथों को वह भाषा बोलने वाली पीढ़ियां अपनी अमूल्य विरासत के रूप में स्वीकार करती हों। साथ ही उस भाषा में मौलिकता भी होनी चाहिए अर्थात् उस भाषा से जुड़े साहित्यिक ग्रंथों में कुछ विशेषताएं ऐसी होनी चाहिए जो किसी अन्य संस्कृति का विरोध ना करती हों, जिनमें कोई अवगुण न हो।"
किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा घोषित करने के लाभ
किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा घोषित करने के अनेक लाभ हो सकते हैं, इसमें सर्व प्रमुख होता है कि सरकार उस भाषा के विकास और पुनरुत्थान के लिए कुछ आयोगों का गठन करती है। उस भाषा के विकास में लगे हुए संस्थानों को मान्यता देती है, उन्हें वित्तीय सहायता देती है। उस भाषा पर गहन अध्ययन एवं शोध के लिए अनुसंधान संस्थानों का गठन करती है।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) से अनुरोध करता है कि वह केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शास्त्रीय भाषाओं के लिये पेशेवर अध्यक्षों के कुछ पदों की घोषणा करें। इससे रोजगार के नए अवसर पैदा होते हैं।
इसके अलावा UGC इन भाषाओं से जुड़े अनुसंधान केंद्रों की स्थापना भी करता है ताकि इनसे जुड़े साहित्यिक ग्रंथों एवं इनका इतिहास संजोया जा सके।
शास्त्रीय भाषाओं को जानने और अपनाने से विश्व स्तर पर उस भाषा को पहचान और सम्मान मिलेगा। वैश्विक स्तर पर उस प्राचीन संस्कृति का प्रसार होगा जो शास्त्रों में ही सिमट कर रह गई है। साथ ही इससे उन प्राचीन ऐतिहासिक तथ्यों को जानने और समझने का अवसर मिलेगा जो भाषा की अज्ञानता के कारण हमसे दूर है।
बहुत से ऐसे शास्त्र हैं जो इन भाषाओं में लिखे गए हैं परंतु इन भाषाओं की जानकारी ना होने के कारण आम जनमानस की समझ से परे हैं।
अनेक धर्म शास्त्र जैसे वेद, पुराण, उपनिषद जो संस्कृत भाषा में लिखे गए हैं परंतु संस्कृत भाषा के पतन के कारण इन शास्त्रों को पढ़ पाना और समझ पाना आम लोगों के लिए असंभव है। उसी प्रकार तमिल भाषा में "संगम साहित्य" की रचना की गई जो तमिल भाषा का सबसे प्राचीन साहित्य है। तमिल में लिखे 'कंबन रामायण' को तमिल साहित्य में सबसे बड़ा महाकाव्य माना जाता है। पदिनेकिल्लकणक्कु 18 कविताओं वाला एक आचारमूलक ग्रंथ है तथा यह तृतीय संगम साहित्य से संबंधित है। इन 18 कविताओं में महत्त्वपूर्ण कविता तमिल के महान कवि और दार्शनिक तिरुवल्लुवर द्वारा लिखित तिरुक्कुरल है। इसे तमिल साहित्य का बाइबिल अथवा पंचम वेद भी माना जाता है।
तेलुगु के आदिकवि नन्नय भट्ट ने संस्कृत महाभारत का अनुवाद तेलुगु पद्य में किया। यह अनुवाद होते हुए भी स्वतंत्र कृति के रूप में दिखाई देता है। विजयनगर काल को तेलगू साहित्य का स्वर्ण युग कहा जाता था। उसी प्रकार कन्नड़, मलयालम, ओड़िया भाषाओं का इतिहास भी हजारों वर्ष पुराना है और इन भाषाओं के अनेक साहित्यिक ग्रंथ जो आज भी प्रासंगिक हैं। उड़िया भाषा के प्रथम महान कवि झंकड़ के सारला दास रहे, जिन्हें 'उड़ीसा के व्यास' के रूप में जाना जाता है। इन्होने देवी की स्तुति में 'चंडी पुराण' व 'विलंका रामायण' की रचना की थी। 'सारला महाभारत' आज भी घर-घर में पढ़ा जाता है। अर्जुन दास द्वारा रचित 'राम-विभा' को उड़िया भाषा की प्रथम गीतकाव्य या महाकाव्य माना जाता है।
इस प्रकार किसी प्राचीन भाषा को, किसी प्राचीन संस्कृति से, साहित्य से जुड़ी भाषा को शास्त्रीय भाषा घोषित कर देने से उस भाषा का विकास होगा, उस भाषा से जुड़े साहित्य ग्रंथों पर शोध होगा और अनेक ऐतिहासिक तथ्य लोगों के सामने आएंगे। लोगों को प्राचीन लुप्त हो चुकी संस्कृति के बारे में अधिक गहराई से जानने और समझने का अवसर प्राप्त होगा। शास्त्रीय भाषाओं की जानकारी से लोग अपनी संस्कृति को और बेहतर तरीके से समझ सकेंगे तथा प्राचीन संस्कृति और साहित्य से और बेहतर तरीके से जुड़ सकेंगे।
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