बौद्ध धर्म क्या है | बौद्ध धर्म और सनातन हिन्दू धर्म मे समानता

महात्मा बुद्ध


नमस्कार दोस्तों आज हम चर्चा करेंगे बौद्ध धर्म क्या है और बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांत कौन कौन से हैं? ये तो आप जानते ही हैं कि बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा बुद्ध हैं, हालांकि उन्होंने इस धर्म का नामकरण नहीं किया था लेकिन इस धर्म की स्थापना उन्होंने ही की थी। इस धर्म का नामकरण उनके शिष्य ने किया था। 

सबसे पहले महात्मा बुद्ध के बारे में कुछ जान लेते हैं वैसे तो आप लोग जानते ही हैं कि उनका जन्म कपिलवस्तु के लुंबिनी नामक ग्राम में 563 ईसा पूर्व हुआ था। उनके पिता का नाम शुद्धोधन एवं माता का नाम महामाया था। उनके जन्म के सातवें दिन ही उनकी मां का निधन हो जाता है, इस वजह से उनका पालन पोषण उनकी मौसी महा प्रजापति गौतमी ने किया था। इनका विवाह 16 वर्ष की आयु में शाक्य वंश की कन्या यशोधरा से हो जाता है। इनका एक पुत्र भी था जिसका नाम राहुल था। बचपन से ही सांसारिक जीवन में इनका झुकाव बहुत कम था, इनका अत्यधिक समय आध्यात्मिक चिंतन में बीता करता था। यह बचपन से ही परेशान रहा करते थे। इन्हें अजीब सी अनुभूतियां होती थी। पहली बार राज्य भ्रमण पर जाने पर इन्होंने मनुष्य की विभिन्न अवस्थाएं प्रथम बार देखी थी जिसे देखने के पश्चात इन्हें बहुत कष्ट हुआ। इन्हें अपना जीवन मिथ्या लगने लगा एवं सत्य की खोज में यह परेशान रहने लगे। इस वजह से सांसारिक जीवन से इनका मोह भंग हो गया एवं 29 वर्ष की आयु में सत्य की खोज के लिए बिना किसी को बताए घर से निकल गए। इधर उधर भटकते हुए 6 वर्ष की कठिन तपस्या करने के बाद वैशाख पूर्णिमा के दिन बिहार स्थित गया नामक स्थान पर निरंजना नदी के तट पर पीपल वृक्ष के नीचे इन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ और यह बुद्ध कहलाए जबकि वह स्थान बोधगया के नाम से विश्व में प्रसिद्ध हुआ। इसी प्रकार वह पीपल का वृक्ष भी बोधि वृक्ष के नाम से विश्व प्रसिद्ध हुआ।

यहां यह प्रश्न उठता है कि धर्म क्या होता है? सबसे पहले जानते हैं धर्म क्या होता है।

धर्म एक संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है धारण करने योग्य। वास्तव में धर्म उन विचारों, उन सिद्धांतों या उन संस्कृतियों को कहा जाता है जो धारण करने योग्य हैं।

इसे संस्कृत के एक श्लोक के माध्यम से समझते हैं -
यतो ऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धिः स धर्मः।
धर्म वह अनुशासित जीवन क्रम है, जिसमें लौकिक उन्नति (अविद्या) तथा आध्यात्मिक परमगति (विद्या) दोनों की प्राप्ति होती है।


अक्सर हम लोग धर्म,पंथ,संप्रदाय अथवा मजहब को एक ही मान लेते हैं। अंग्रेजी में इन सभी को Religion कहा जाता है। यह हमारी मजबूरी है कि हम धर्म को Religion मान लेते हैं। वास्तव में धर्म Religion से उसी प्रकार अलग है जिस प्रकार संविधान Constitution से अलग है।

रिलीजन अर्थात संप्रदाय अथवा मजहब कुछ विशेष परंपराओं को मानने वाले लोगों के समूह को कहा जाता है, जो हर किसी के लिए अलग-अलग होती हैं जबकि धर्म सदैव एक रहता है, धर्म वह होता है जो हर किसी का कल्याण चाहता है धर्म वह है जो सदैव सत्य रहता है, धर्म वह है जो परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुसार बदल भी सकता है अर्थात सामान्य परिस्थितियों में जो धर्म है, आवश्यकता पड़ने पर वह अधर्म भी हो सकता है। एक उदाहरण से समझते हैं धर्म में अहिंसा को विशेष बल दिया जाता है। यह उपदेश दिया जाता है कि मनुष्य को सदैव शांति एवं अहिंसा के पथ पर चलना चाहिए परंतु यदि सामने कोई किसी को मार रहा हो, किसी पर अत्याचार कर रहा हो, किसी को प्रताड़ित कर रहा हो और हम चुपचाप उसे देखते रहें, अहिंसा का पालन करते रहें तो यह अधर्म है। इस प्रकार हमने देखा की परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुसार धर्म परिवर्तित हो सकता है। व्यक्ति को धर्म एवं अधर्म के मध्य का भेद समझना चाहिए। महाभारत में पितामह भीष्म ने यही गलती की थी, उन्होंने अपने व्यक्तिगत वचन का पालन करना धर्म समझ लिया था, जिस वजह से उन्होंने हस्तिनापुर की सभा में इतने अन्याय होने दिए, इतने अत्याचार होने दिए और परिणाम तो सबको पता ही है।

धर्म तो आपने जान लिया अब  समझते हैं कि बौद्ध धर्म क्या है 


वास्तव में बौद्ध धर्म भी उन्हीं विचारों उन्हीं सिद्धांतों का एक समूह है जो भारतीय धर्म एवं दर्शन में प्राचीन काल से ही प्रचलित थी। बौद्ध धर्म भी कुछ विशेष सिद्धांतों को मानने वाले लोगों के समूह को कहा जाता है। 

अब बौद्ध धर्म के आष्टांगिक मार्ग को समझिए

सम्यक दृष्टि (वस्तुओं को उनके वास्तविक स्वरूप में देखना}
सम्यक संकल्प (भौतिक सुखों के प्रति आकर्षण का त्याग करना)
सम्यक वाक् (सदैव सत्य बोलना)
सम्यक कर्मांत (सदैव सत्य कर्म करना)
सम्यक जीविका (सदाचार पूर्वक आजीविका अर्जित करना)
सम्यक व्यायाम (नैतिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक उन्नति के लिए सदैव प्रयत्नशील रहना)
सम्यक स्मृति (अंधविश्वासों का, मिथ्या धारणाओं का त्याग कर देना एवं वास्तविक अवधारणाओं को स्मरण रखना)
सम्यक समाधि (मन की एकाग्रता)

बौद्ध धर्म और सनातन हिन्दू धर्म मे समानता 

बौद्ध धर्म एवं सनातन वैदिक धर्म में अत्यधिक समानताएं हैं वास्तव में महात्मा बुद्ध ने उसी प्राचीन वैदिक संस्कृति को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है जो विकृत होते समाज में खो गई थी। महात्मा बुद्ध ने जिस अष्टांगिक मार्ग का वर्णन किया है वह सिद्धांत भारतीय धर्म एवं दर्शन में प्राचीन काल से ही लोग मानते आए हैं। हालांकि उस काल में विकृत मानसिकता वाले ब्राह्मणों का वर्चस्व अधिक हो जाने के कारण इस समाज में काफी विकृतियां आ गई थी और इन्हीं विकृतियों की वजह से समाज के हर वर्ग ब्राह्मण वर्ग से क्षुब्ध थे। 

भारतीय धर्म एवं दर्शन में एक श्लोक प्रचलित है

धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो, दशकं धर्मलक्षणम् ॥

धृति (धैर्य),    
क्षमा (दूसरों के द्वारा किए गए अपराध को माफ कर देना, क्षमाशील होना), 
दम (अपनी वासनाओं पर नियन्त्रण करना), 
अस्तेय (चोरी न करना),   
शौच (आंतरिक और बाहरी शुचिता), 
इन्द्रिय निग्रहः (इन्द्रियों को वश में रखना), 
धी (बुद्धिमत्ता का प्रयोग), 
विद्या (अधिक से अधिक ज्ञान की पिपासा), 
सत्य (मन, वचन और कर्म से सत्य का पालन) और अक्रोध (क्रोध न करना); 

इस प्रकार हम देखते हैं कि वास्तव मे बौद्ध धर्म कोई मौलिक धर्म नहीं है बल्कि सनातन हिन्दू धर्म का ही एक अभिन्न अंग है। भले ही धर्म के ठेकेदार अर्थात तथाकथित धर्मगुरु दोनों को अलग अलग परिभाषित करने का प्रयास करते हों लेकिन वस्तुतः दोनों एक ही सिद्धान्त के विभिन्न अर्थों के समुच्चय हैं, एक ही मूल स्वरूप के दो अभिन्न अंग हैं, न कि एक दूसरे से अलग और स्वतंत्र। 


महात्मा बुद्ध एवं महावीर स्वामी यह दोनों ही क्षत्रिय वंश के थे, इस वजह से क्षत्रियों ने बढ़ चढ़कर इन धर्मों को स्वीकार किया क्योंकि वे भी ब्राम्हणों के वर्चस्व को चुनौती देना चाहते थे। उन्होंने इन्हे संरक्षण भी दिया। ये धर्म अहिंसा के सिद्धांत पर बहुत जोर देते थे, इस वजह से व्यापारियों ने इसे हितकर समझा एवं उन्होंने भी इसे बढ़-चढ़कर स्वीकार किया, हाथों हाथ लिया। उसी प्रकार उस समय के समाज में शूद्रों को अछूत माना जाता था जबकि बौद्ध धर्म में या जैन धर्म में किसी प्रकार का भेदभाव छुआछूत नहीं था। इस वजह से इन धर्मों को शुद्र समाज तेजी से स्वीकार करने लगा था। अपने इन्हीं सिद्धांतों की वजह से यह धर्म पूरे भारत ही नहीं बल्कि विश्व में भी तेजी से फैल रहे थे। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार विदेशों में भी किया और इसके लिए अपने पुत्र महेंद्र एवं पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा था।


इस प्रकार आज हमने बौद्ध धर्म के बारे में जाना, बौद्ध धर्म एवं वैदिक धर्म में समानताओं के बारे में जाना, महात्मा बुद्ध के जीवन प्रारंभ में कैसा था संक्षेप में इस पर भी चर्चा की। इसके अलावा धर्म  मजहब या संप्रदाय किस प्रकार से अलग हैं यह भी जाना। धर्म क्या होता है, भारतीय धर्म एवं दर्शन क्या है, इन सभी चीजों पर विस्तार से चर्चा की।


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